Monday, August 29, 2011


रेलवे का निकाल रहा है दीवाला 

मंत्री फुटबाल खेलने में मतवाला 

नई दिल्ली : पिछले करीब तीन साल से भारतीय रेल का समय बहुत ख़राब चल रहा है, उस पर इसे वर्तमान सहित लगातार तीन मंत्री न सिर्फ अकार्यक्षम और निहित्स्वार्थी मिले हैं, बल्कि उनका रेलवे के कार्य से कोई खास मतलब भी नहीं रहा है. इनमे से पूर्व और वर्तमान मंत्री को तो रेलवे के दिन-प्रतिदिन के कामकाज से कोई लेना-देना ही नहीं जान पड़ रहा है, यह रेलवे से सिर्फ अपने मतलब साधने में लगे रहे हैं. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री को अपने रोज-रोज के पचड़ों से ही फुर्सत नहीं है, तो वह रेलवे के उत्थान-पतन के बारे में कैसे कोई समीक्षा कर सकते हैं? 

एक तरफ रेलवे गर्त में जा रही है तो दूसरी तरफ वर्तमान रेलमंत्री कोलकाता के कचरापाड़ा ग्राउंड पर फुटबाल खेलने में मस्त हैं. उन्हें 11 जोनल रेलों के महाप्रबंधकों की खाली पड़ी पोस्टों को भरने की कोई चिंता नहीं दिखाई दे रही है. और न ही रेलवे बोर्ड में मेम्बर टैफिक की करीब डेढ़ साल खाली पड़ी पोस्ट को भरने की कोई जल्दी है, जो कि वास्तव में रेलवे की एक महत्वपूर्ण अर्निंग पोस्ट है. रेल अधिकारियों और कर्मचारियों को इस सबके पीछे कोई बड़ी साजिश अथवा पैसे के लेनदेन का खेल नजर आ रहा है. यदि ऐसा है भी, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि रेलवे की बदौलत ही तो पूर्व और वर्तमान रेलमंत्री की पार्टी को पश्चिम बंगाल की सत्ता नसीब हुई है..? 

अब यह तो बिलकुल साफ तौर पर तय हो गया है कि श्री कुलदीप चतुर्वेदी को मेम्बर ट्रैफिक नहीं बनाया जा रहा है. इस साजिश के तहत श्री चतुर्वेदी जैसे एक निहायत ईमानदार रेल अधिकारी को रेलवे बोर्ड पर हावी निहितस्वार्थी मंडली ने न सिर्फ पूरी तरह दरकिनार कर दिया है बल्कि उनका स्वच्छ कैरियर भी बाधित कर दिया है. इसी साजिश के तहत श्री दीपक कृष्ण का कैरियर भी बाधित किया गया और इसी के तहत श्री राजीव भार्गव का कैरियर भी लगातार बाधित किया जा रहा है, जो साफ तौर पर चेयरमैन, रेलवे बोर्ड के उम्मीदवार थे, उनका भी कैरियर करीब-करीब ख़त्म कर दिया गया है. उनकी फाइल को कैबिनेट सेक्रेटरी के पास अटके हुए लगभग दो महीने हो रहे हैं, मगर उसे मंगाने कि फिक्र बोर्ड में किसी को नहीं है. 

अब इसी तरह जानबुझकर एक और ईमानदार ट्रैफिक अधिकारी और जीएम पैनलिस्ट श्री एन. सी. सिन्हा का भी कैरियर बाधित करने की साजिश रेलवे बोर्ड के कुछ निहितस्वार्थी तत्वों द्वारा की जा रही है. वर्ष 2010-11 और 2011-12 के कई जीएम पैनलिस्ट अधिकारियों का कैरियर समय से उनकी पोस्टिंग न हो पाने के कारण बर्बाद हो चुका है, क्योंकि पिछले करीब एक साल से जीएम पोस्टिंग की राह देखते-देखते उनका कार्यकाल दो साल से कम  हो गया है. इसके अलावा रेलवे को पिछले साल लगभग 20,000 करोड़ रु. का नुकसान हो चुका है, जो कि चालू वित्त वर्ष में बढ़कर करीब 25,000 करोड़ हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. खबर तो यह भी है कि रेलवे ने 2,000 करोड़ रु. का लोन लिया है, जिससे कर्मचारियों का वेतन भुगतान किया जा सके? इन सब परिस्थितियों को देखते हुए भी रेलमंत्री को रेलवे की कोई चिंता हो रही है, ऐसा नहीं दिखाई दे रहा है, क्योंकि जो मंत्री फुटबाल खेलने में मस्त हो और रेल भवन में जमकर बैठता ही न हो, उसे अपने विभाग की कोई चिंता है, ऐसा कम से कम उसके व्यव्हार से तो नहीं लग रहा है?

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