पू.म.रे.: मैनपावर प्लानिंग
की और अधिक जरुरत
सिर्फ डिप्टी सीई/सी की कुछ पोस्टें कम करने से काम नहीं चलेगा
हाजीपुर : पू. म. रे. ने मैनपावर प्लानिंग के तहत कुछ डिप्टी सीई/सी की पोस्टें कम की हैं जिससे 'रेलवे समाचार' की इस दिशा में चलाई जा रही मुहिम कुछ रंग लाई है. हालाँकि मैनपावर प्लानिंग और मैनेजमेंट में पू. म. रेलवे ने कुछ जरुरी कदम उठाए हैं मगर इससे काम नहीं चलेगा, बल्कि पू. म. रेलवे को इस सन्दर्भ में और ज्यादा कड़े निर्णय लेने होंगे. तथापि पू. म. रे. प्रशासन ने डिप्टी सीई/सी की कुछ संख्या कम करके एक सराहनीय काम किया है और इसका श्रेय सीएओ/सी श्री पी. एस. तिवारी को जाता है. वह इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार पू. म. रे. निर्माण संगठन में हाजीपुर, दानापुर, दरभंगा, सहरसा और समस्तीपुर में डिप्टी सीई/सी की पोस्टें कम की गई हैं.बताते हैं कि डिप्टी सीई/सी हाजीपुर-2 को डिप्टी सीई/सी हाजीपुर-4 में और डिप्टी सीई/सी दानापुर -1 को डिप्टी सीई/सी पटना में मर्ज किया गया है. मगर विभागीय सूत्रों का कहना है कि अभी भी डिप्टी सीई/सी की करीब 6 पोस्टें और कम हो सकने की पूरी गुंजाइश है, जिसमे से एक डिप्टी सीई/सी गंगा ब्रिज की भी पोस्ट है. इन्हें मर्ज किए जाने की आवश्यकता है. क्योंकि सूत्रों का कहना है कि जहाँ कोई काम नहीं है और फंड भी नहीं मिल रहा है, वहां इन पोस्टों को बनाए रखकर सिर्फ रेलवे को आर्थिक नुकसान ही हो रहा है.
हमारे विभागीय कर्मचारी सूत्रों का कहना है कि इसी प्रकार पूर्वोत्तर रेलवे (एनईआर) और पूर्व रेलवे (पू.रे.) के लीनधारी ग्रुप 'बी' एवं ग्रुप 'सी' अधिकारियों और कर्मचारियों को भी उनकी पैरेंट रेलवे में अविलम्ब वापस भेजा जाना चाहिए, क्योंकि यह लोग यहाँ बिना काम के बैठकर तदर्थ आधार पर अपनी योग्यता से तीन गुना ज्यादा वेतन और पदोन्नतियां ले रहे हैं जिससे रेल राजस्व को भारी नुकसान हो रहा है, जो किसी भी दृष्टि से उचित या तर्कसंगत प्रतीत नहीं हो रहा है. पता चला है कि ग्रुप 'सी' एवं ग्रुप 'डी' के कुछ कर्मचारियों को सरप्लस किए जाने की बात की जा रही है.
यदि ये बात सही है तो कर्मचारियों का मानना है कि 'इस सन्दर्भ में यही उचित होगा कि यहाँ पूर्वोत्तर रेलवे एवं पूर्व रेलवे के जो लीनधारी कर्मचारी हैं, उन्हें ही वापस भेज दिया जाए, क्योंकि ये लोग पिछले 10-15 सालों से पू.म.रे. को दीमक की तरह चाट रहे हैं. ये लोग न सिर्फ परंपरागत भ्रष्टाचार में लिप्त हैं बल्कि उसे और ज्यादा बढ़ा रहे हैं.' उनका कहना है कि 'ये लोग यहाँ गलत तरीके से 3-3, 4-4 तदर्थ पदोन्नतियां और गलत टीए/डीए लेकर तथा डेड स्टोर में नियुक्त होकर पिछले 10-15 सालों में इस रेलवे को करोड़ों का चूना लगा चुके हैं.'
कर्मचारियों का कहना है कि 'डेड स्टोर', जहाँ रेलवे का अनुपयोगी सामान रखा जाता है और जहाँ से पिछले 10-12 सालों से कोई ट्रांजेक्शन नहीं हुआ है, और जिसे नियमानुसार समस्तीपुर मेन स्टोर डिपो में भेजा जाना चाहिए, जिसके लिए डीएस-8 ने एक पत्र भी लिखा था. उनका कहना है कि इस तरह से प्रत्येक स्टोर डिपो के नाम पर नियुक्त तमाम चौकीदारों का उपयोग अन्य उपयोगी स्थानों पर किया जा सकता है. यदि सही गाड़ना की जाए तो जिस मटीरियल की सुरक्षा इन चौकीदारों द्वारा की जा रही है उसकी कीमत से भी 10 गुना ज्यादा कीमत वेतन भुगतान के रूप में अब तक इस रेलवे द्वारा इन चौकीदारों को की जा चुकी है. यह रेलवे के हित में कतई नहीं है.
कर्मचारियों का कहना है कि चूँकि सभी कार्य अब ओपन टेंडर के माध्यम से किए जा रहे हैं और सप्लायरों द्वारा सम्बंधित कार्य क्षेत्र में स्थित स्टोर डिपो को टेंडर के अनुसार सीधे मटीरियल सप्लाई दिए जाने से अब काफी बचत हो जाएगी, इसलिए सेंट्रल सप्लाई स्टोर डिपो हाजीपुर और देहरी ऑन सोन को भी अब बनाए रखने की जरुरत नहीं रह गई है. इन्हें बनाए रखना इस रेलवे के हित में नहीं है, क्योंकि अब सभी मटीरियल का कम्बाइन टेंडर डिप्टी सीई/ट्रेक सेल, महेन्द्रू घाट, पटना के माध्यम से किया जा रहा है. इसके साथ ही यह भी नियम बनाया जाए कि आवश्यकता से ज्यादा सामान किसी को भी जारी नहीं किया जाएगा.
ज्ञातव्य है कि डिप्टी सीई/ट्रेक कार्यालय द्वारा सभी फ़ील्ड यूनिट्स के डिप्टी सीई/सी कार्यालयों की प्रोजेक्ट जरूरतों के आधार पर मटीरियल परचेज का टेंडर जारी किया जाता है. उसी टेंडर में यह भी प्रावधान किया जाना चाहिए कि सप्लायर एजेंसी द्वारा फ़ील्ड यूनिट्स की आवश्यकतानुसार प्रोजेक्ट के कार्यक्षेत्र में बने स्टोर डिपो अथवा यार्ड/स्टेशन पर लांगर पी-वे मटीरियल को अनलोड किया जाए और स्माल पी-वे मटीरियल को अस्थाई रूप से बने स्टोर्स में अनलोड किया जाना चाहिए, जहाँ हाजीपुर या देहरी ऑन सोन सेंट्रल स्टोर्स से मटीरियल ले जाकर रखा जाता है जो कि रेलवे के हित में कतई नहीं है. क्योंकि इससे खर्च बढ़ता है और सेंट्रल स्टोर से बार-बार प्रत्येक फ़ील्ड यूनिट में मटीरियल ले जाने के चलते रेलवे को प्रति प्रोजेक्ट करीब 3 से 4 करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है.
कुछ कर्मचारियों का कहना था कि यह भी व्यवस्था की जानी चाहिए कि आवश्यकतानुसार ही मटीरियल का परचेज टेंडर किया जाए और यह टेंडर भी इस तरह किया जाए कि मटीरियल का उपयोग करने से एक-दो महीने पहले ही साईट पर इसके पहुँचने की प्रक्रिया पूरी हो जिससे बाहरी और असामाजिक तत्वों द्वारा मटीरियल का नुकसान न हो और कार्य एजेंसी द्वारा उसे तुरंत उपयोग में ले लिया जाए. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि सेंट्रल स्टोर में रखने के बाद वहां से जब दुबारा उक्त मटीरियल फ़ील्ड यूनिट्स के लिए जारी किया जाता है तो उसमे अनियमितता किए जाने और मटीरियल कम दिए जाने की तमाम शिकायतें पूर्व में सम्बंधित कर्मचारियों द्वारा की जाती रही हैं. चूँकि फ़ील्ड यूनिट्स में कार्यरत कर्मचारियों को सेट में कम मटीरियल मिलता है और सेट में भी जो मटीरियल दिया जाता है उसकी कुछ फिटिंग्स की संख्या में कमी रहती है, जिसके चलते फ़ील्ड यूनिट्स के सम्बंधित कर्मचारियों के वेतन से भविष्य में प्रोजेक्ट की समाप्ति के बाद रिकवरी होना तय है, जो की कतई न्यायसंगत नहीं होगा.
इसके अलावा कई बार फ़ील्ड यूनिट्स के कर्मचारियों द्वारा सेंट्रल स्टोर के लोगों से यह भी निवेदन किया जाता रहा है कि सेट में वह जो मटीरियल दे रहे हैं या जारी कर रहे हैं, उसे इशू नोट के पीछे अथवा इशू नोट में दर्ज कर दिया जाए, मगर सेंट्रल स्टोर के कामचोर कर्मचारियों द्वारा यह इसलिए नहीं किया जा रहा है, क्योंकि इसमें बहुत भारी धांधली है और 'सेट' के नाम पर यहाँ बहुत लूट हो रही है. इस लूट में सेंट्रल स्टोर कर्मियों और सप्लायरों की पूरी मिलीभगत बताई जाती है.
अतः रेलवे के हित में सर्वथा यही उचित होगा कि निर्माण विभाग से सम्बंधित सभी मटीरियल निर्धारित प्रोजेक्ट के फ़ील्ड स्टोर अथवा यार्ड/स्टेशन में सम्बंधित सप्लायरों द्वारा सीधे सप्लाई किया जाना चाहिए. जैसा कि अन्य सभी रेलों में हमेशा से होता चला आ रहा है और वहां यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है. इसके साथ ही 'सेट' में दिया गया मटीरियल उसके नाम और संख्या के अनुसार इशू नोट में दर्ज होना चाहिए. आश्चर्य है कि पू.म.रे. की ओपन लाइन के सेंट्रल स्टोर में भी यह प्रक्रिया अपनाई जा रही है, मगर वहीँ नाक के नीचे निर्माण संगठन में इस पर अमल नहीं हो रहा है.
यह भी पता चला है कि यहाँ जिस मटीरियल का उपयोग काफी बाद में होना था उसकी खरीद काफी पहले यानि करीब 4-5 साल पहले कर ली गई थी और यह प्रक्रिया अब भी चल रही है. इससे रेल राजस्व को भारी नुकसान हुआ है. इसे रोका जाना चाहिए और मटीरियल के उपयोग से 2 महीने पहले उसकी खरीद सुनिश्चित की जानी चाहिए. इसके अलावा जिस तरह डिप्टी सीई/वर्क्स, महेन्द्रू घाट, पटना के द्वारा सभी फ़ील्ड यूनिट्स की जरुरत के आधार पर कम्बाइन टेंडर करके पाकुर एवं राजग्राम सेंट्रल स्टोर से सम्बंधित फ़ील्ड यूनिट्स को सीधे स्टोन बलास्ट और स्लीपर्स की सप्लाई सुनिश्चित की जाती है, उसी तरह पी-वे मटीरियल की सप्लाई भी सीधे फ़ील्ड यूनिट्स को ही की जानी चाहिए. इससे जहाँ भविष्य में फ़ील्ड यूनिट्स की कम मटीरियल सप्लाई होने की शिकायत ख़त्म हो जाएगी, वहीँ रेलवे राजस्व की भारी बचत भी होगी और प्रत्येक सेंट्रल स्टोर्स में नियुक्त करीब 25-30 कर्मचारियों का निर्माण संगठन में कहीं अन्यत्र ज्यादा सार्थक उपयोग किया जा सकेगा.
बीसीएन/बोबियन का रेट कम हुआ..
'रेलवे समाचार' की मुहिम के चलते और पू.म.रे. सतर्कता संगठन द्वारा की गई कार्यवाही के बाद आल टाइप वैगन के हिसाब से बीसीएन/बोबियन का पहले जो रेट 42 रु. से 58 रु. के बीच था, वह अब नए टेंडरों में 16 रु. से 20 रु. के बीच निर्धारित किया गया है. इससे अब पू.म.रे. में प्रत्येक क्यूबिक मीटर स्टोन बलास्ट की अनलोडिंग में करीब 26 रु. से 38 रु. की भारी बचत संभव हो पाई है. इसी प्रकार पूर्व में 'रेलवे समाचार' द्वारा मिट्टी की जाँच (स्वाइल टेस्टिंग) में सिंगल लिमिटेड टेंडर (एसएलटी) प्रक्रिया में हो रही भारी धांधली को उजागर किए जाने के बाद पूर्व सीएओ/सी श्री सुबोध कुमार जैन ने एसएलटी को बंद करके इसमें ओपन टेंडर प्रक्रिया शुरू करा दी थी, जिससे अब यह काम पहले की अपेक्षा पांच गुना कम रेट पर हो रहा है और इसमें अबतक करोड़ों रु. की बचत हुई है.
सेक्शनों का टेकओवर नहीं किया
पू.म.रे. समस्तीपुर मंडल के सीतामढ़ी - रुन्नी सैदपुर और सीतामढ़ी - बरगेनिया सेक्शनों का सीआरएस निरीक्षण और यात्री गाड़ियों का परिचालन शुरू होने के आज करीब सात महीने बीत जाने के बाद भी इंजीनियरिंग विभाग ओपन लाइन ने टेकओवर नहीं किया है. ज्ञातव्य है कि उक्त दोनों सेक्शनों का सीआरएस निरीक्षण 19 फरवरी को और यात्री गाड़ियों का परिचालन 12 अप्रैल 2011 को स्थानीय सांसद अर्जुन राय द्वारा सवारी गाड़ी को हरी झंडी दिखाकर डीआरएम और जीएम की उपस्थिति में किया गया था. जबकि जून में इस विषय में पूछे जाने पर डीआरएम/समस्तीपुर श्री त्रिवेदी ने कहा था कि जल्दी ही उक्त दोनों सेक्शन ओपन लाइन को सौंप दिए जाएँगे, परन्तु तीन महीने और बीत जाने के बाद भी ओपन लाइन द्वारा इनका टेकओवर किए जाने के प्रति कोई रूचि नहीं दिखाई जा रही है. क्या इसका मतलब यह निकला जाए कि ओपन लाइन द्वारा किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार किया जा रहा है, जिससे सारा दोष निर्माण विभाग पर डाला जा सके? इसके अलावा जब रेलवे बोर्ड ने इस सम्बन्ध में सारी प्रक्रिया पहले से ही निर्धारित की हुई है तो इस देरी के लिए ओपन लाइन को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जा रहा है और तदनुरूप अबतक उसके खिलाफ कारवाई क्यों नहीं की गई है? यह सवाल यहाँ कर्मचारियों के बीच बड़ी शिद्दत से पूछा जा रहा है.
No comments:
Post a Comment