Friday, May 11, 2012


"भारतीय रेल का पुनरुत्थान - एक चिंतन" विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार संपन्न 

भारतीय रेल का राजनीतिक दोहन बंद किया जाए -शिवगोपाल मिश्रा 

मुंबई : राष्ट्रीय पाक्षिक 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' द्वारा "भारतीय रेल का पुनरुत्थान - एक चिंतन" जैसे अत्यंत समसामयिक विषय पर बुधवार, 9 मई को वाई. बी. चव्हाण प्रतिष्ठान सभागृह, मंत्रालय के पास, जनरल जे. एन. भोसले मार्ग, नरीमन पॉइंट, मुंबई में राष्ट्रीय सेमिनार का सफल आयोजन किया गया. इस महत्वपूर्ण सेमिनार में भारतीय रेल के उच्च अधिकारी और सभी पांचो मान्यताप्राप्त फेडरेशनों के पदाधिकारियों सहित बड़ी संख्या में रेल कर्मचारी और यात्री संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. सेमिनार में मुंबई से म. रे. के मुख्य कार्मिक अधिकारी/प्रशासन श्री रविन्द्र कुमार, 'नवभारत टाइम्स' के संपादक श्री सुंदर चंद ठाकुर, पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री महेश कुमार, मध्य रेलवे के महाप्रबंधक श्री सुबोध कुमार जैन, दिल्ली से डेडिकेटेड फ्रेट कारीडोर कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसी) के निदेशक श्री पी. एन. शुक्ल, आल इंडिया रेलवे प्रोटेक्शन फ़ोर्स एसोसिएशन (एआईआरपीएफए) के महासचिव श्री यू. एस. झा, अध्यक्ष श्री एस. आर. रेड्डी, लखनऊ से आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के महासचिव का. शिवगोपाल मिश्रा, आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के सहायक महासचिव और नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन (एनआरएमयू) के महासचिव का. श्री पी. आर. मेनन, नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन रेलवेमेंस (एनएफआईआर) के सहायक महासचिव और पश्चिम रेलवे मजदूर संघ के महासचिव श्री जे. जी. माहुरकर, पटना से इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) के अध्यक्ष श्री जे. पी. सिंह, और महासचिव श्री जीतेन्द्र सिंह, चेन्नई से दक्षिण रेलवे के मुख्य यातायात प्रबंधक श्री अजीत सक्सेना आदि प्रबुद्ध वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए.  

रेल प्रबंधन के उपरोक्त सभी विशेषज्ञ और औद्योगिक शांति एवं उत्पादन में भागीदार सभी कर्मचारियों एवं अधिकारी संगठनों के पदाधिकारियों ने इस सेमिनार में शामिल होने की अपनी पूर्व सहमति प्रदान की थी. सभी वक्ताओं ने कहा कि इस अत्यंत समसामयिक परिचर्चा में बहुत महत्वपूर्ण सुझाव सामने आए हैं, जिन पर विचार और अमल करने से भारतीय रेल के उत्थान में रेल प्रशासन को अवश्य मदद मिलेगी. सभी कर्मचारियों एवं अधिकारी संगठनों के पदाधिकारियों ने कहा कि जो पहल हम लोगों को करनी चाहिए थी, वह 'परिपूर्ण रलवे समाचार' ने की है. इसे अब और आगे बढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतीय रेल विषय पर पिछले 15 वर्षों से लगातार प्रकाशित हो रहे एकमात्र पाक्षिक 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' ने भारतीय रेल के पुनरुत्थान जैसे विभिन्न समसामयिक विषयों पर सेमिनारों का आयोजन करके रेल प्रशासन और रेल व्यवस्था के हित में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. मंच पर उपस्थित सभी अधिकारियों और कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों ने गलत नीतियों और भारतीय रेल के राजनीतिक दोहन के खिलाफ एकजुट होकर अपनी एकता को मजबूत करने पर जोर दिया. श्री रविन्द्र कुमार ने मानव संसाधन विषय पर अपने महत्वपूर्ण विचार रखे, जबकि श्री सुंदरचंद ठाकुर ने सर्वसामान्य यात्रियों की सुविधाएं बढाए जाने और फालतू खर्चों में कटौती की बात कही. श्री पी. एन. शुक्ल ने डीएफसीसी की प्रगति के माध्यम से भारतीय रेल में काम करने और श्री अजीत सक्सेना ने आध्यात्मिक तरीके से व्यक्तिगत चरित्र के निर्माण की बात कही. 

पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री महेश कुमार और मध्य रेलवे के महाप्रबंधक श्री सुबोध कुमार जैन ने अत्यंत सरल तरीके से अपनी बात कही. उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि रेलवे की हालत काफी ख़राब है, मगर यह भी कहा कि ऐसा नहीं है कि इसमें सुधार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि रेलवे में अच्छे लोगों की कोई कमी नहीं है. श्री यू. एस. झा और श्री जे. पी. सिंह ने पूर्व वक्ताओं द्वारा कही गई बातों का समर्थन करते हुए कहा कि यदि रेल प्रशासन ने तुरंत कोई करेक्टिव एक्शन नहीं लिया तो हालत और बिगड़ सकती है. इस अवसर पर एआईआरएफ के अध्यक्ष और वयोवृद्ध ट्रेड युनियनिस्थ का. उमरावमल पुरोहित ने भी जोश में आकर काफी ओजस्वी भाषण दिया, हालांकि वह सिर्फ सेमिनार में होने वाली परिचर्चा का अध्ययन करने आए थे. सेमिनार के अध्यक्ष का. शिवगोपाल मिश्रा ने अंत में अपने संबोधन में कहा कि अत्यंत सीमित मैन पावर और संसाधनों के बावजूद 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' ने भरतीय रेल के पुनरुत्थान की जो पहल की है, उसे आगे बढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा कि यदि समय रहते भारतीय रेल के राजनीतिक दोहन को नहीं रोका गया तो इसे एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइंस के रास्ते पर जाने से नहीं रोका जा सकेगा. उन्होंने यह भी कहा कि यदि रेल प्रशासन ने कर्मचारी और अधिकारी संगठनों की वाजिब मांगों को नहीं माना तो रेल का चक्का जाम करने पर भी हम विचार करने से नहीं हिचकिचाएंगे. 

फोटो परिचय : 

1. 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' के सेमिनार विशेषांक का विमोचन करते हुए बाएँ से आईआरपीओएफ के अध्यक्ष श्री जे. पी. सिंह, डीएफसीसी के निदेशक श्री पी. एन. शुक्ल, प. रे. के महाप्रबंधक श्री महेश कुमार, म. रे. के महाप्रबंधक श्री सुबोध कुमार जैन, एआईआरएफ के महाचासचिव का. श्री शिवगोपाल मिश्रा और एआईआरपीएफए के महासचिव श्री यू. एस. झा. इस अवसर पर श्री रविन्द्र कुमार, श्री पी. आर. मेनन, श्री अजीत सक्सेना, श्री एस. आर. रेड्डी, श्री जे. जी. माहुरकर और श्री जीतेन्द्र सिंह भी उपस्थित थे. 


2. 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' द्वारा "भारतीय रेल का पुनरुत्थान - एक चिंतन" विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के मंच पर उपस्थित दाएं से एआईआरपीएफए के महासचिव श्री यू. एस. झा, एआईआरएफ के महाचासचिव का. श्री शिवगोपाल मिश्रा, म. रे. के महाप्रबंधक श्री सुबोध कुमार जैन, प. रे. के महाप्रबंधक श्री महेश कुमार, डीएफसीसी के निदेशक श्री पी. एन. शुक्ल. 

3. 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' द्वारा "भारतीय रेल का पुनरुत्थान - एक चिंतन" विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के मंच पर उपस्थित दाएं से द. रे. के सीटीएम श्री अजीत सक्सेना, म. रे. के सीपीओ/ए श्री रविन्द्र कुमार, एनआरएमयू के महासचिव का. पी. आर. मेनन, आईआरपीओएफ के महासचिव श्री जीतेन्द्र सिंह, एआईआरपीएफए के महासचिव श्री यू. एस. झा, एआईआरएफ के महाचासचिव का. शिवगोपाल मिश्रा, म. रे. के महाप्रबंधक श्री सुबोध कुमार जैन, प. रे. के महाप्रबंधक श्री महेश कुमार, डीएफसीसी के निदेशक श्री पी. एन. शुक्ल, आईआरपीओएफ के अध्यक्ष श्री जे. पी. सिंह, डब्ल्यूआरएमएस के महासचिव श्री जे. जी. माहुरकर और  एआईआरपीएफए के अध्यक्ष श्री एस. आर. रेड्डी. 

Saturday, May 5, 2012


भारतीय रेल का पुनरुत्थान...

ऐसा क्या हो गया है कि आज सब तरफ भारतीय रेल के पुनरुत्थान की बात की जा रही है? पुनरुत्थान की बात क्यों हो रही है, क्या संसाधन कम हो गए हैं? इस चिंता का कारण आखिर क्या है? क्या इस महान संस्था के प्रति हमारी संवेदना कम हो रही है? क्या हमारा स्वार्थ हम पर हावी हो रहा है? संस्था के लिए हमारी जवाबदेही और वफादारी क्यों कम हो रही है? आखिर क्या कारण है की आज एक अख़बार (परिपूर्ण रेलवे समाचार) को इसके पुनरुत्थान के लिए आगे आकर सार्वजनिक परिचर्चा का आयोजन करना पड़ रहा है? इसका कारण शायद यह है कि इस महान संस्था के अधिकतर लोग परजीवी हो गए हैं. यह परजीवी लोग दूसरों पर निर्भर हो गए हैं. यह बात इस संस्था से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होती है, वह चाहे मंत्री हो, चाहे अधिकारी हो या कर्मचारी हो, इसके लिए इनमें से कोई एक व्यक्ति दोषी नहीं है. सब एक-दूसरे की आड़ ले रहे हैं, किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि करना क्या है? किसी को सही गलत का भान नहीं रह गया है. कोई यह सोचकर कि वह सिर्फ टहनी काट रहा है, इससे पेड़ को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कोई पत्ते नोंच रहा है, तो कोई छाल छील रहा है, और कोई अगर मजबूत स्थिति में है तो वह तना काटने पर तुला है, और जो जड़ों में मट्ठा डालने की हालत में है, तो वह वैसा भी कर रहा है. अपने इस तरह के कृत्य से सब यह मानकर चल रहे हैं कि इससे पेड़ (संस्था) को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. मगर इनमें से कोई यह नहीं सोच रहा है कि जब संस्था (भारतीय रेल) ही नहीं बचेगी, तब उनका क्या अस्तित्व रह जाएगा?  

जो कुछ तथाकथित अच्छे लोग हैं, वह कोई वाजिब निर्णय नहीं लेना चाहते हैं, वह डरे हुए हैं. वह या तो अधर्म का साथ दे रहे हैं अथवा उसकी खुशामद में लगे हैं, या फिर कुछ पाने की इच्छा या खोने के डर से निहितस्वार्थवश चुप्पी साधे हुए हैं और निरीह जिंदगी जी रहे हैं. मगर जो ख़राब लोग हैं उन्हें कोई डर नहीं है, वह निःशंक भाव से अधर्म में लगे हैं. दूर-दूर तक ऐसा कोई व्यक्तित्व नजर नहीं आ रहा है, जिससे कोई उम्मीद की जा सके. पिछले 15 वर्षों में जब से यह 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' प्रकाशित हो रहा है, तब से लेकर अब तक भारतीय रेल में एक भी व्यक्तित्व ऐसा नजर नहीं आया है, जिसे प्रेरणा स्रोत माना जा सके. हम यहाँ रेलवे के मान्यताप्राप्त फेडरेशनों के पदाधिकारियों की बात नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वह कोई प्रशासकीय निर्णय लेने की जगह पर नहीं हैं. हम यहाँ उच्च प्रशासनिक पदों पर विराजमान अधिकारियों की बात कर रहे हैं, जो वास्तव में तमाम प्रशासनिक निर्णय लेने की स्थिति में हैं. परन्तु फिर भी वे दिशाहीन हैं और उनमें दूरदर्शिता एवं पारदर्शिता का भारी आभाव है. वे राजनीतिक नेतृत्व की हाँ में हाँ मिला रहे हैं और संस्था को डुबा रहे हैं. यहाँ तक कि जब मान्यताप्राप्त फेडरेशनों ने बढ़ा हुआ रेल किराया वापस लिए जाने की स्थिति में उसकी भरपाई केंद्रीय बजट से किए जाने की मांग की, तब भी यह लोग उनके साथ एकजुट नहीं हुए. इसको क्या समझा जाए, क्या इसका मतलब यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि ये लोग सिर्फ अपनी नौकरी बचाने और अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए है? 

राजनीतिक गठबंधन से ही सिर्फ भारतीय रेल का बंटाधार नहीं हुआ है, बल्कि अंतर-विभागीय प्रतिस्पर्धा और लाग-डाट ने भी भारतीय रेल का पूरी तरह से बंटाधार कर रखा है. एक तरफ राजनीतिक गठबंधन की मज़बूरी ने पिछले 15-20 वर्षों से भारतीय रेल को राजनीतिक चारागाह बनाकर रखा है, तो दूसरी तरफ नौकरशाही ने इसका फायदा उठाते हुए इस चारागाह में अपनी रोटियां भी खूब सेंकी हैं. मंत्री किराया नहीं बढ़ाएगा, वह प्रधानमंत्री की बात मानने के बजाय अपनी पार्टी सुप्रीमो के मार्गदर्शन में चलेगा, तो उसके मातहत उसकी नौकरशाही अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही को भुलाकर सिर्फ उसके आगे-पीछे चलेगी और उसकी हर उलटी-सीधी बात को नियम-कानून का जामा पहनाकर लागू करेगी, फिर चाहे उससे संस्था का बंटाधार ही क्यों न हो जाए. यही वजह है कि पूरी तरह अयोग्य और कदाचारी होते हुए भी एक अधिकारी पहले मेम्बर बनने में कामयाब हो जाता है, और बाद में उसी तरीके से सर्वोच्च पद को हथियाकर मेम्बर के पद को भी वर्षों तक हड़पकर अपने पास रखता है और पूरी व्यवस्था उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है. इसके लिए किसी बाहरी व्यक्ति को अदालत की शरण में जाना पड़े, इससे बड़ा दुर्भाग्य इस संस्था का और क्या हो सकता है? उच्च पदों पर राजनीतिक स्वार्थ और भ्रष्टाचार के जरिए कदाचारी एवं अयोग्य लोगों का बैठाया जाना और इसके लिए योग्य, कर्मठ तथा ईमानदार लोगों को दरकिनार करना, और ऐसे लोगों (प्रधानमंत्री) का चुप रह जाना भी, भारी राजनीतिक, प्रशासनिक और व्यवस्थागत चारित्रिक गिरावट का प्रतीक है. 

ऐसा भी नहीं है कि इस महान संस्था में अच्छे, ईमानदार और कर्मठ लोगों की कोई कमी है. जब ऐसे लोगों को मौका मिलता है, या मौका दिया जाता है, तो वह वो काम करके दिखा देते हैं जिसके बारे में पहले से ही यह मान लिया जाता है या कहा जाता है कि वैसा नहीं हो सकता. ऐसा कोई अधिकारी जब कार्यकारी पद पर आता है तो मुंबई मंडल में कल्याण स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म से मेल-एक्सप्रेस गाड़ियाँ चलने लगती हैं. झाँसी मंडल की कैटरिंग आय प्रतिमाह 6 लाख से बढ़कर 30 लाख तक पहुँच जाती है. मगर इस सब के चलते कुछ अधिकारियों सहित उनके बीवी-बच्चे बिना जिम में गए ही दुबले-पतले और छरहरे हो जाते हैं, क्योंकि रोज सबह उन्हें रेलवे कैफेटेरिया से दूध, ब्रेड-बटर और और आमलेट का नास्ता मिलना बंद हो जाता है. बढ़िया बासमती चावल और तमाम राशन उनके घरों में नहीं पहुँच पाता है. दिल्ली स्टेशन की हालत सुधार जाती है, जिसके बारे में सीएजी की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि वैसी ही व्यवस्था सभी रेलों और रेलवे स्टेशनों पर लागू की जानी चाहिए. जबकि अधर्मी और भ्रष्ट लोगों के चलते जब तक ट्रांसफार्मर आते हैं, तब तक करोड़ों का केबल पड़े-पड़े सड़ जाता है और नदी पर बनाए जा रहे रेलवे पुल का एक कुआँ आठ मीटर नीचे धंस जाने के बावजूद एक चीफ इंजीनियर महोदय द्वारा न सिर्फ उस ठेकेदार की दो करोड़ की पेनाल्टी माफ़ कर दी जाती है, बल्कि ठेके को शार्ट क्लोजर और वर्क कम्पलीशन सर्टिफिकेट देकर उसकी ढाई करोड़ की परफार्मेंस गारंटी भी रिलीज कर दी जाती है, मगर महाप्रबंधक महोदय इसकी जानकारी देने वाले की कॉल रिसीव करने की जहमत भी नहीं उठाना चाहते हैं, जब मामले को जाँच एजेंसियों की तरफ बढ़ता देखा जाता है, तो सम्बंधित चीफ इंजीनियर को दूसरी जगह शिफ्ट करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है. 

कोई महाप्रबंधक या अधिकारी बहुत शरीफ है, बहुत ईमानदार है, मगर वह अपने जोन या विभाग का बंटाधार सिर्फ इसलिए करके चला जाता है, क्योंकि उसे मेम्बर या विभाग प्रमुख बनने से बायपास किया गया था. कोई विभाग प्रमुख अपनी चरित्रहीनता के लिए जाना जाता है, तो कोई काम न करने के लिए अपनी पहचान बना रहा होता है, भले ही उसके मातहत अधिकारी और कर्मचारीगण कितने ही हतोत्साहित क्यों न हो रहे हों. कोई रेलवे बोर्ड में बैठकर अयोग्य मगर अपने चात्तुकार लोगों को अपने भविष्य की प्लानिंग के तहत जोनो में विभाग प्रमुख के पदों पर सम्बंधित विभाग के मेम्बर की पोस्टिंग होने से कुछ पहले बैठा देता है, तो कोई अंधे के हाथ बटेर लग जाने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सर्वोच्च पद पर पहुँच जाता है. कोई अपने विभाग के सर्वोच्च पद पर होते हुए भी तमाम जानकारी के बावजूद किसी कदाचारी जूनियर अधिकारी को नहीं हटा पाता है. कोई वहां पहुंचकर भी उससे ऊपर पहुँचने की लालसा में तमाम जोड़-तोड़ के चलते अपनी रही-सही गरिमा भी खो बैठता है. राजनीतिक वरदहस्त के चलते कोई समय से पहले और कई योग्य लोगों को बायपास करते हुए जब मेम्बर बनने में कामयाब हो जाता है तो उसका सारा ध्यान अपने राजनीतिक आका की इच्छापूर्ति में ही लगा रहता है, वह संस्था की भलाई के बारे में फिर कभी सोच भी नहीं पाता है अथवा तब उसे ऐसा करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है. इस सब परिप्रेक्ष्य में संस्था (भारतीय रेल) कहाँ गुम हो जाती है, इसका किसी को कोई ख्याल ही नहीं रह जाता है. 

सत्ता का नशा जब आदमजात के पूर्वजों यानि बंदरों में पाया गया है, तो 'बन्दर की औलाद' यानि 'आदमी' में यह न पाया जाता, तो शायद ताज्जुब होता. ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने हाल ही में बबूनो जाति के अफ़्रीकी बंदरों पर किए गए एक अध्ययन में पाया है कि दिमाग पर सत्ता का प्रभाव कोकीन के नशे जैसा होता है. अध्ययन में पाया गया है कि सत्ता का नशा बंदरों के दिमाग में टेस्टेटेरान हार्मोंस का लेवल उसी तरह से बढ़ा देता है जैसा कोकीन का सेवन करने से बढ़ जाता है. ये बढ़े हुए हार्मोंस दिमाग में डोपामाइन नामक केमिकल का लेवल बढ़ा देते हैं, जिससे बन्दर अधिक आक्रामक और सेक्स में ज्यादा सक्रिय हो जाता है. इससे उनका व्यवहार भी बदल जाता है. सत्ता का ऐसा ही प्रभाव आदमी और रेल अधिकारियों में भी देखा जा सकता है. बड़े-बुजुर्ग तो पहले ही इस पर 'सत्ता का नशा सिर चढ़कर बोलता है' जैसा एक मुहावरा बना गए हैं. और यह भी सच है कि उनके बनाए हुए ऐसे मुहावरे या कहावतें आजतक कभी झूठी साबित नहीं हुई हैं. सर्वसामान्य लोग और उसके मातहत इस बात से अक्सर दुखी दिखाई देते हैं कि कोई सरकारी अधिकारी या उनका 'बॉस' उनके साथ अजीब ढंग से क्यों पेश आता है? उन्हें उसका यह आक्रामक व्यवहार समझ में नहीं आता है. परन्तु इस अध्ययन के बाद अब तो यह समझ में आ जाना चाहिए कि हमारे राजनेता और सरकारी अधिकारी आम आदमी के साथ क्यों एक अलग तरह का व्यवहार करते हैं और एक बार कुर्सी या पद मिल जाने के बाद एक दिन उसके चले जाने का ख्याल भी उनके मन में क्यों नहीं आता है. लेकिन जिस प्रकार ऊँची सत्ता अथवा ऊँचा पद या प्रमोशन कोकीन की तरह किसी राजनेता या सरकारी अधिकारी का आत्म-विश्वास बढ़ा देता है, उसी तरह वह उनका नुकसान भी करता है. यह बात समय रहते वह समझ नहीं पाते हैं, यह तो सत्ता या पद चले जाने के बाद ही उनकी समझ में आती है. यह भी सही है कि सत्ता मिलने पर व्यक्ति चिंताग्रस्त और दिग्भ्रमित रहने लगता है, क्योंकि उसमें धैर्य की कमी हो जाती है और अहंकार पैदा हो जाता है. 

यहाँ उपरोक्त अध्ययन का उदाहरण इसलिए दिया गया है, क्योंकि हमने पिछले 15-20 सालों में भारतीय रेल के विभिन्न छोटे-बड़े पदों पर आसीन अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने पद के अहंकार में चूर देखा है. जो व्यवहार उन्हें ऊपर से मिला होता है, वही व्यवहार वह खुद ऊपर पहुंचकर करने लगते हैं. नीचे स्तर पर रहते हुए जो बात उन्हें गलत लगती है या नागवार गुजरती है, वही उनके ऊपर पहुँच जाने पर ठीक लगने लगती है और वह भी अपने मातहतों से वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं. फिर आम आदमी तो उन्हें भुनगे की तरह नजर आने लगता है. नीचे स्तर पर रहते हुए जो अधिकारी स्टाफ वेलफेयर की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, महाप्रबंधक या बोर्ड मेम्बर बनने के बाद वही उन्हें फालतू लगती हैं. क्योंकि तब वे सर्वसुविधा संपन्न और बड़े बंगलों में रहने लगते हैं, जहाँ उनकी सिर्फ एक 'हूं' में दाल पकती है तथा उन्हें सारी सुविधाएं तुरंत मुहैया हो जाती हैं. जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड तक के अधिकारियों को भी उनसे मिल पाना दुर्लभ हो जाता है. जबकि किसी प्रभावशाली व्यक्ति का फोन आ जाने पर वह उसी तरह अपनी चेयर से उठकर खड़े हो जाते हैं जैसे कभी विभाग प्रमुख की इंटरकॉम पर आवाज सुनते ही उचक कर खड़े हो जाया करते थे, वह भी अपने सेक्रेटरी और जूनियर्स के सामने, तथापि उन्हें अपने इस व्यवहार पर लज्जा नहीं आती है. 

कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि हर हालत में सामान्य और ईमानदार बने रहने में कोई बुराई नहीं है. किसी भी स्तर पर पहुँच जाने के बाद भी इंसानियत को नहीं भुलाया जाना चाहिए. अपने पद और अपनी गरिमा का ख्याल रखते हुए भी उसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए. अपनी जवाबदेही और उत्तरदायित्व का पूरा पालन किया जाना चाहिए. स्टाफ और जनसामान्य के कल्याण हेतु निर्णय लेने में कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए. इनका ख्याल रखने से अपनी और अपने मातहतों की उत्पादकता को बेहतर ढंग से बढ़ाया जा सकता है. जिसका लाभ अंततः संस्था को ही मिलता है. वरना जब संस्था ही नहीं रहेगी, तो पद के अहंकार और सत्ता के नशे का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. 
-प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी 
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Thursday, May 3, 2012

ALL OF YOU ARE CORDIALLY INVITED...


"भारतीय रेल का पुनरुत्थान - एक चिंतन" विषय पर 'रेलवे समाचार' 
द्वारा आयोजित सेमिनार में रेलवे के सभी मान्यताप्राप्त फेडरेशन शामिल  

मुंबई : करीब ढाई साल के एक लम्बे अंतराल के बाद 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' द्वारा "भारतीय रेल का पुनरुत्थान - एक चिंतन" जैसे अत्यंत समसामयिक विषय पर बुधवार, 9 मई को वाई. बी. चव्हाण प्रतिष्ठान सभागृह, मंत्रालय के पास, जनरल जे. एन. भोसले मार्ग, नरीमन पॉइंट, मुंबई में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है. इस महत्वपूर्ण सेमिनार में भारतीय रेल के उच्च अधिकारी और सभी पांचो मान्यताप्राप्त फेडरेशनों के उच्च पदाधिकारियों सहित बड़ी संख्या में रेल कर्मचारी और यात्री संगठनों के प्रतिनिधि भाग लेंगे. सेमिनार में मुंबई से 'नवभारत टाइम्स' के संपादक श्री सुंदर चंद ठाकुर, पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री महेश कुमार, मध्य रेलवे के महाप्रबंधक श्री सुबोध कुमार जैन, दिल्ली से डेडिकेटेड फ्रेट कारीडोर कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड के निदेशक श्री पी. एन. शुक्ल, उत्तर रेलवे के मुख्य अभियंता/मुख्यालय श्री ए. के. वर्मा, रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक और फेडरेशन ऑफ़ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशंस (एफआरओए) के महासचिव श्री शुभ्रांशु, आल इंडिया रेलवे प्रोटेक्शन फ़ोर्स एसोसिएशन (एआईआरपीएफए) के महासचिव श्री यू. एस. झा, लखनऊ से आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के महासचिव का. श्री शिवगोपाल मिश्रा, सिकंदराबाद से नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआईआर) के महासचिव श्री एम. राघवैया, पटना से इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) के अध्यक्ष श्री जे. पी. सिंह और चेन्नई से दक्षिण रेलवे के मुख्य यातायात प्रबंधक श्री अजीत सक्सेना शामिल हैं. 

रेल प्रबंधन के विशेषज्ञ और औद्योगिक शांति एवं उत्पादन में भागीदार इन सभी अधिकारियों और मान्यताप्राप्त संगठनों के पदाधिकारियों ने सेमिनार में शामिल होने की अपनी सहमति प्रदान की है. इनके अलावा भी कुछ और लोग अपने विचार इस अवसर पर रखेंगे. उम्मीद है कि इस अत्यंत समसामयिक परिचर्चा में कुछ बहुत महत्वपूर्ण सुझाव - प्रस्ताव सामने आएँगे, जिन पर विचार और अमल करने से भारतीय रेल के उत्थान में रेल प्रशासन को अवश्य मदद मिलेगी. भारतीय रेल विषय पर पिछले 15 वर्षों से लगातार प्रकाशित हो रहे एकमात्र पाक्षिक 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' का भारतीय रेल के पुनरुत्थान में यह एक महत्वपूर्ण योगदान होगा. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1997 में अपने प्रकाशन के बाद से सन 2000 में 'भारतीय रेल व्यवस्था में मीडिया की भूमिका' विषय पर कल्याण में पहला सेमिनार आयोजित करके 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' ने रेल व्यवस्था में अपने योगदान की शुरुआत की थी. तत्पश्चात समय-समय पर मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम स्थित गरवारे क्लब में 'रेल संरक्षा पर सार्वजनिक संगोष्ठी' (वर्ष 2003), 'इम्प्रूविंग सेफ्टी इन रेल इंजीनियरिंग वर्क्स' (वर्ष 2004), 'सिक्योरिटी ऑफ़ सबर्बन रेल यूजर्स' (वर्ष 2005), 'रोल ऑफ़ विजिलेंस आर्गनाइजेशन इन रेलवे सिस्टम' (सिडनहम कॉलेज मुंबई, वर्ष 2006), 'सिक्योरिटी ऑफ़ रेल यूजर्स एंड डिजास्टर मैनेजमेंट' (म्यूजियम हाल, पटना, वर्ष 2007), 'सबर्बन ट्रांसपोर्ट सिनारियो इन मुंबई - प्रोजेक्ट्स एंड प्लानिंग्स' (वर्ष 2008), 'इकनामिक वायबिलिटी थ्राफ डेवेलपमेंट ऑफ़ नान-कन्वेंशनल रेवेन्यु रिसोर्सेस ऑफ़ इंडियन रेलवेज' (सिडनहम कॉलेज मुंबई, वर्ष 2009) आदि समसामयिक विषयों पर सेमिनारों का आयोजन करके 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' ने रेल प्रशासन और रेल व्यवस्था के हित में अपना अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया है.