Thursday, December 29, 2011


मजारिटी से नहीं माइनारिटी से लिए जाते हैं निर्णय..

कोलकाता : इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन ( आईआरपीओएफ) की वार्षिक सर्वसाधारण सभा (एजीएम) और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानि पीपीपी पर सेमिनार यहाँ 26-27 दिसंबर को संपन्न हुआ. फेडरेशन के दोनों कार्यक्रम लगभग पूरी तरह फ्लाप रहे. क्योंकि एजीएम में करीब आधी से ज्यादा रेलों के प्रतिनिधि पहुंचे ही नहीं, और सेमिनार में ईडी/पीपीपी और एसडीजीएम/द.पू.रे. के अलावा कोई बड़ा अधिकारी न तो रेलवे बोर्ड से और न ही कोलकाता स्थित दोनों जोनल रेलों से आया. इसके अलावा सभी जोनल रेलों और उत्पादन इकाइयों से करीब 100 प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों की उपस्थिति के बजाय एजीएम में कुल मिलाकर लगभग 50-55 लोग, वह भी परिवार सहित, ही उपस्थित थे. क्योंकि जो लोग आए भी थे उनमें सभी रेलों से 4-4 प्रतिनिधि और जोनल अध्यक्ष एवं महासचिव नहीं थे. साथ ही सभी उत्पादन इकाइयों के प्रतिनिधि भी नहीं आए थे. बताते हैं कि पहले दिन का खाना भी कुछ ठीक नहीं था और खाने वाले भी कम थे, जबकि दूसरे दिन सेमिनार के बाद लंच पर कुल करीब 55-60 लोग ही जुट पाए थे, जबकि मंच से दावा यह किया गया था कि पू. रे. से हमारे 18 अधिकारी आएँगे, जबकि पू. रे. में करीब 260 प्रमोटी अधिकारी हैं. मगर आए कुल 8 या 9 अधिकारी, जिनमे 4 प्रतिनिधि और 2 पदाधिकारी भी शामिल थे. पता चला है कि फेडरेशन का कोषाध्यक्ष भी इस एजीएम में नहीं आया. यह भी पता चला है कि उसने इस पद से अपना इस्तीफा दे दिया है

प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले दिन अध्यक्ष की अनुमति से एजीएम की कार्यवाही शुरू हुई, जिसमे सर्वप्रथम सेक्रेटरी जनरल रिपोर्ट और कोषाध्यक्ष की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. कोषाध्यक्ष की अनुपस्थिति में यह रिपोर्ट श्री अमेश कुमार ने रखी. बताते हैं कि इसमें सिर्फ चार रेलों को छोड़कर बाकी सभी पर बकाया दिखाया गया है. जबकि सेक्रेटरी जनरल रिपोर्ट में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था. प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य रेलवे के अध्यक्ष श्री आर. बी. दीक्षित के बाद पूर्व रेलवे के महासचिव श्री डी. एन. वर्मा ने कहा कि उनकी रेलवे पर दिखाया गया बकाया फर्जी है, क्योंकि प्रॉप मैगजीन और संलग्नता फीस के अलावा किसी मद को बकाया नहीं कहा जा सकता. इसके अलावा बताते हैं कि उन्होंने यह भी कहा कि संलग्नता फीस की मद में दी गई राशि को किसी अन्य मद में फेडरेशन द्वारा कैसे जमा किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि उनकी जोनल बॉडी की एजीएम में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि प्रॉप और संलग्नता फीस के अलावा फेडरेशन को अन्य किसी मद में कोई राशि नहीं दी जाएगी. बताते हैं कि श्री वर्मा ने कहा कि क्या पीपीपी ही एक विषय बचा है सेमिनार करने के लिए, ग्रुप 'बी' की भलाई के किसी अन्य विषय पर क्यों नहीं सोचा जाता है? उन्होंने कहा कि पीपीपी पर अथवा ऐसे किसी अन्य विषय पर सेमिनार करने पर सभी रेलों ने विरोध किया था. फिर भी यह सेमिनार क्यों किया जा रहा है, यह उनकी समझ से परे है. 

बताते हैं कि श्री वर्मा के बाद आए सभी वक्ताओं ने श्री वर्मा की बात का कम या ज्यादा समर्थन किया. बताते हैं कि उ. म. रे. के अध्यक्ष श्री एस. एस. परासर ने कहा कि सेमिनार के नाम पर 50 हज़ार रु. की राशि बहुत ज्यादा है, इतनी बड़ी राशि तय किए जाने से ज्यादातर रेलें डिफाल्ट तो होंगी ही. सभी उत्पादन इकाइयां भी 25 हज़ार की राशि दे पाने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए पहली बात तो यह कि ऐसे सेमिनार के आयोजन के औचित्य पर विचार किया जाए और अगर यह करना ही चाहिए तो राशि के बारे में पुनः विचार किया जाना चाहिए तथा इसकी लागत घटाई जानी चाहिए. बताते हैं कि प. रे. के महासचिव श्री दीपक शैली ने कहा कि उनकी रेलवे पर कोई एक पैसे का भी बकाया नहीं है, बल्कि फेडरेशन पर ही उनका पांच हज़ार का बकाया निकलता है, जो कि वह सूद सहित फेडरेशन से वसूल करेंगे. बताते हैं कि सेमिनार के नाम पर प्रत्येक जोनल रेलवे से 50 हज़ार की राशि पर उन्होंने भी अपनी असहमति व्यक्त की. बताते हैं कि उत्तर पूर्व सीमान्त रेलवे के महासचिव श्री जे. सी. दास और पूर्वोत्तर रेलवे के महासचिव श्री पी. के. खुराना ने भी श्री वर्मा की बात से अपनी सहमति जताते हुए कहा कि श्री वर्मा ने जो कुछ भी यहाँ अभी कहा है वह उससे पूरी तरह सहमत हैं. उन्होंने श्री वर्मा द्वारा कही गई पर्सनल, सिविल और एकाउंट्स के लिए अतिरिक्त पोस्टें दिए जाने के पूर्व सीआरबी के आश्वाशन और उसके पूरा न होने तथा 5400 ग्रेड पे, 50 : 50 परसेंट कोटा, मिस्लेनिअस कैडर आदि जैसी मांगों के पूरा न होने की बातों का पूरा समर्थन किया. 

बताते हैं कि इसी तरह अन्य सभी रेलों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बात रखी. परन्तु बताते हैं कि श्री वर्मा द्वारा कहे गए कटु सत्य पर जब पूरा सदन उन्हें चुपचाप और पूरी तन्मयता के साथ सुन रहा था और उनके साथ अपनी सहमति व्यक्त कर रहा था, तब इससे बुरी तरह तिलमिलाए सेक्रेटरी जनरल, हालाँकि यह भारी-भरकम पदनाम ऐसे झूठे और चापलूस लोगों पर शोभा नहीं देता, ने उठकर माइक अपने हाथ में लेकर सदन से कहा कि श्री वर्मा कुछ भी बोले जा रहे हैं और आप लोग चुपचाप सुने जा रहे हैं, जबकि वह (श्री वर्मा) सब झूठ कह रहे हैं, और आप लोग कुछ नहीं बोल रहे है.. इस पर भी जब किसी ने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने ही आगे कहा कि जो भी निर्णय लिए गए, वह बहुमत (मजारिटी) से लिए गए थे.. उनका इतना कहना था कि बताते हैं कि श्री वर्मा फिर अपनी जगह से बोल पड़े कि सेक्रेटरी जनरल सभी निर्णय मजारिटी से नहीं माइनारिटी से लेते हैं.. इस पर पूरा सदन हंस पड़ा. बताते हैं कि श्री वर्मा यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपनी जगह से ही सदन को बताया कि गत वर्ष नवम्बर 2010 में सेक्रेटरी जनरल ने दिल्ली डीआरएम ऑफिस में जो इमर्जेंट मीटिंग बुलाई थी, उसमे सिर्फ 5-6 रेलों के ही लोग आए थे, उसी में सेमिनार के लिए प्रत्येक जोनल रेलवे से 50 हज़ार और प्रोडक्शन यूनिट से 25 हज़ार रु. इकठ्ठा करने का निर्णय लिया गया था, तो यह मजारिटी से लिया गया निर्णय कैसे कहा जा सकता है? 

बताते हैं कि श्री वर्मा की इस साफगोई से जहाँ पूरा सदन सहमत था, वहीँ इस स्थित से बुरी तरह तिलमिलाए सेक्रेटरी जनरल अपना सा मुंह लेकर अपनी जगह वापस आकर बैठ गए. पता चला है कि दूसरे दिन 10.30 बजे से पहले ही एक प्रस्ताव सेक्रेटरी जनरल ने अपनी चालाकी से यह पास करा लिया कि जिन रेलों पर बकाया है, उन्हें अगली किसी भी एजीएम या ईसीएम में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी. एजीएम में उपस्थित रहे कई जोनल महासचिवों ने 'रेलवे समाचार' से बातचीत में कहा कि यह प्रस्ताव खासतौर पर श्री डी. एन. वर्मा को बाहर रखने के लिए सेक्रेटरी जनरल ने पास कराया है. मगर प्राप्त जानकारी के अनुसार फेडरेशन द्वारा इस एजीएम में वितरित किए गए अपने लेखा-जोखा में द. प. रे. पर 80 हज़ार, प. म. रे. पर 64 हज़ार, उ. म. रे. पर 94750, उ. पू. सी. रे. पर 93 हज़ार, आरडीएसओ पर 69 हज़ार, प. रे. पर 24 हज़ार, पू. रे. पर 1.55 लाख और मेट्रो रेलवे पर 52 हज़ार रुपये का बकाया दर्शाया है. बताते हैं कि सेक्रेटरी जनरल द्वारा जब यह कहा गया कि मेट्रो रेलवे को भी अपना बकाया चुकाना होगा, तो मेट्रो के पदाधिकारी रोने जैसी हालत में दिखाई दिए और माइक पर उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला. जबकि बताते हैं कि बिलासपुर ईसीएम में मेट्रो का सभी बकाया माफ़ कर दिए जाने सम्बन्धी प्रस्ताव पास किया गया था. 

'रेलवे समाचार' से बातचीत में कई जोनल महासचिवों ने कहा कि मेट्रो के साथ फेडरेशन और सेक्रेटरी जनरल की यह वादाखिलाफी ही नहीं, बल्कि भारी विश्वासघात भी है. इन महासचिवों ने दबी जबान में यह भी कहा कि दिल्ली में कराए गए पिछले सेमिनार में हुए सात लाख रु. के खर्च का हिसाब अबतक नहीं दिया गया है, और इस सेमिनार के खर्च और एकत्रित हुई राशि का तो फ़िलहाल कहना ही क्या? बताते हैं कि प. रे. के श्री शैली ने अगले साल की एजीएम अपने यहाँ मुंबई में कराने का एक प्रस्ताव रखा ही था कि सेक्रेटरी जनरल ने इस मुद्दे को लपक लिया और घोषणा कर दी कि अगली एजीएम 'दिसंबर' में समंदर किनारे वापी, प. रे. में होगी. हालाँकि बताते हैं कि कई प्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया कि जब अगली एजीएम जुलाई में हमेशा होना तय रहता है तो दिसंबर में क्यों? मगर उनकी बात को पूरी तरह अनसुना कर दिया गया, क्योंकि सेक्रेटरी जनरल जनवरी 2013 में अपने रिटायर होने तक सेक्रेटरी जनरल बने रहना चाहते हैं, जिससे पूर्व सेक्रेटरी जनरल की बराबरी करने और उनकी तरह रिटायर्मेंट तक सेक्रेटरी जनरल बने रहने की उनकी ख्वाहिश पूरी हो सके. मगर एकाध को छोड़कर लगभग सभी जोनल महासचिव इससे न सिर्फ असहमत हैं, बल्कि वह इसे वर्तमान सेक्रेटरी जनरल की चालाकी भरी एक सर्वथा अनैतिक और असंवैधानिक कोशिश बता रहे हैं. उनका यह भी कहना था कि ऐसा नहीं होने दिया जाएगा. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार फेडरेशन का पीपीपी सेमिनार मात्र डेढ़ घंटे से भी कम समय में निपट गया. बताते हैं कि इसमें सिर्फ तीन वक्ता ही थे. सर्वप्रथम द. रे. के श्री वरदराजन ने 15-20 में मिनट अपना पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन दिया. तत्पश्चात रेलवे बोर्ड की तरफ से आए मुख्य वक्ता और ईडी/पीपीपी श्री एस. के. मिश्रा ने करीब आधे घंटे से भी काम समय में अपना मुख्य वक्तव्य समाप्त कर दिया, क्योंकि जब सुनने वाले ही मात्र 40-45 लोग हों तो सुनाने वाले की रूचि कैसे हो सकती है. बताते हैं कि ज्यादातर लोग कोलकाता घुमने चले गए थे. इसके बाद बताते हैं कि 'पीपीपी विशेषज्ञ' उर्फ़ सेक्रेटरी जनरल ने जरुर आधे घंटे से कुछ ज्यादा समय तक अपनी 'विशेषज्ञता' का प्रदर्शन किया. कुल मिलाकर सेक्रेटरी जनरल का यह सेमिनार शो पूरी तरह फ्लॉप रहा. 

बताते हैं कि इससे पहले सेक्रेटरी जनरल ने अपने एक बिरादरी डीएलडब्ल्यू के महासचिव श्री एस. के. सिंह को खड़ा करके उनसे 'रेलवे समाचार' के पिछले कई अंकों में छपी खबरों को 'कंडम' करने का प्रस्ताव रखवाया. जिसे पूर्वोत्तर रेलवे के महासचिव श्री खुराना ने यह कहकर समर्थित किया कि 'हमने इस पेपर को मांगना और पढ़ना बंद कर दिया है.' बाकी किसी प्रतिनिधि अथवा जोनल पदाधिकारी ने इस प्रस्ताव पर अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. इस पर बताते हैं कि सेक्रेटरी जनरल ने कहा कि 'आप लोग किसी 'स्तरीय' पेपर को पढ़ा करें.' बहरहाल, इस पर कुछ पदाधिकारियों का कहना था कि 'इसी अख़बार ने पिछले 10-12 सालों में प्रमोटी अधिकारियों की तमाम समस्याओं को तब हाई लाइट किया, जब कोई अन्य अख़बार हमारी समस्याओं को समझने तक को तैयार नहीं था.' उनका यह भी कहना था कि 'इसी अख़बार ने प्रमोटी अधिकारियों को रेलवे में उनकी गरिमा, सम्मान और पहचान दिलाई है, परन्तु आज एक 'अहमक' की 'अहंमन्यता' के कारण एक खास अख़बार को प्रमोटी अधिकारियों के खिलाफ खड़ा होने के लिए मजबूर किया जा रहा है. 
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Wednesday, December 28, 2011

ट्रैफिक कैडर में वरिष्ठों की अनदेखी..

मुंबई : भारतीय रेल के ट्रैफिक अधिकारियों में भारी असंतोष व्याप्त है. यहाँ वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारियों को अनदेखा करके कनिष्ठ अधिकारियों को विभाग प्रमुख के पदों पर बैठाया जा रहा है. जिस प्रकार कई रेलों में मुख्य परिचालन प्रबंधक (सीओएम) के पदों पर सीनियर ट्रैफिक अधिकारियों को दरकिनार करके उनसे जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों को पदस्थ करने में वरीयता दी गई है, उसी प्रकार मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (सीसीएम) के पदों पर भी यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है. प्राप्त जानकारी के अनुसार कई रेलों में वरिष्ठ और कार्यक्षम ट्रैफिक अधिकारियों को नजरअंदाज करके अपेक्षाकृत अकार्यक्षम और भ्रष्ट, मगर चापलूस, ट्रैफिक अधिकारियों को सीओएम के पदों पर बैठाने में वरीयता दी गई है. बताते हैं कि अब यही प्रक्रिया सीसीएम के पदों पर भी अपनाई जा रही है. हालात यह हैं कि वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारी उपलब्ध होने और यहाँ तक कि सरप्लस होने के बावजूद सीओएम के पद पर बैठाए गए जूनियर ट्रैफिक अधिकारी को ही सीसीएम का भी अतिरिक्त कार्यभार सौंप कर रखा गया है. रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस मामले में सीआरबी के सामने एमटी की नहीं चल पा रही है. सूत्रों का कहना है कि एमटी एक सीधे-सादे अधिकारी हैं, इसलिए वह सीआरबी से इस बारे में कुछ बोल नहीं पा रहे हैं. जबकि सीआरबी अपने फेवरिट और चापलूस अधिकारियों का पूरा फेवर कर रहे हैं. यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि एमटी की पोस्टिंग से मात्र एक हफ्ता पहले सीआरबी ने कई जोनो में अपने कई फेवरिट मगर जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों को सीओएम और सीसीएम बनाकर बैठा दिया था. सूत्रों का कहना है कि रेलवे पर प्राइवेट और पीएफटी साइडिंग बनाने का जबरदस्त दबाव है, इसलिए जहाँ पर्याप्त लाइन क्षमता नहीं है, इसके बावजूद वहां भी धडाधड फाइल क्लियर की जा रही हैं. सूत्रों का कहना है कि इस 'फास्ट फाइल क्लियरिंग' के पीछे इन ट्रैफिक अधिकारियों का भी अपना निहित उद्देश्य है. उनका कहना है कि इसीलिए तो वहां 'उस टाइप' के अधिकारियों को एमटी की पोस्टिंग होने से पहले ही पदस्थ कर दिया गया था. सूत्रों का यह भी कहना है कि वर्तमान एमटी के आने से पहले ही रेलवे बोर्ड में भी कुछ जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों को पदस्थ किया गया. यहाँ तक कि लम्बे समय से रेलवे बोर्ड में एक 'कलेक्शन सेंटर' बन गए एक जूनियर ट्रैफिक अधिकारी का कार्यकाल रेलवे बोर्ड में करीब 6 साल पूरा हो जाने के बाद भी सीआरबी ने उसे और दो साल का एक्सटेंशन (अपने कार्यकाल तक) इसलिए दे दिया है, क्योंकि डीआरएम में कार्यकाल के समय यह अधिकारी उनका सीनियर डीएसओ हुआ करता था. क्रमशः 
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हिंद एनर्जी का सीपत प्लांट बंद..? 
बिलासपुर : विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार हिंद एनर्जी का सीपत स्थित कोल वासरी प्लांट बंद होने के कगार पर पहुँच गया है. सूत्रों ने बताया कि हिंद एनर्जी के इस प्लांट से कोयले की वासिंग के बाद निकलने वाले काले पानी की वजह से आसपास के किसानों की खेती बरबाद हो रही है. इसलिए किसानों ने हिंद एनर्जी के इस प्लांट को बंद किए जाने की मांग को लेकर धरना - प्रदर्शन चालू कर दिया है. उधर सूत्रों ने बताया कि गत सप्ताह 'रेलवे समाचार' में "हिंद एनर्जी और विमला लाजिस्टिक्स को ट्रैफिक अधिकारियों का संरक्षण" नामक शीर्षक से प्रकाशित खबर के बाद से सम्बंधित ट्रैफिक अधिकारियों ने हिंद एनर्जी पर से अपना वरदहस्त हटा लिया है, जिससे जोन सहित रेलवे बोर्ड के अधिकारियों का भी संरक्षण उसे मिलना बंद हो गया है. हिंद एनर्जी के एक अधिकारी ने बिलासपुर में 'रेलवे समाचार' को इन बातों की पुष्टि की है. इसके अलावा सूत्रों का कहना है कि अब एनटीपीसी ने भी उसे एनओसी देने से मना कर दिया है, जिससे रेलवे बोर्ड द्वारा अब उसे को-यूजर परमीशन भी नहीं मिल पा रही है. इसके परिणामस्वरुप एनटीपीसी की सरकारी साइडिंग से हिंद एनर्जी की लोडिंग भी बंद हो गई है..?  
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डीआरएम और जीएम बनने की पर्याप्त 
जानकारी रखते हैं एकाउंट्स अधिकारी?

नयी दिल्ली : वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी की 5 दिसंबर की मीटिंग में चर्चा के दौरान इसके एजेंडा आइटम नंबर-9 पर अन्य किसी भी विभाग ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी मगर एफसी ने अपनी और अपने विभाग की 'विशेषज्ञता' दर्शाने के लिए यह अवश्य कह दिया की "रेलवे की जनरल पोस्टों पर काम करने के लिए 'ले-खा' विभाग (एकाउंट्स कैडर) के अधिकारियों को पर्याप्त जानकारी होती है." उल्लेखनीय  है कि वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी की मीटिंग के एजेंडा और मिनिट्स के अनुसार कमेटी के आइटम नंबर-9 में स्पष्ट कहा गया है कि - "वर्तमान व्यवस्था में डीआरएम और जीएम जैसी पोस्टों को सभी विभागों के लिए खोल दिया गया है, जिन्हें न तो संरक्षा सम्बन्धी ट्रेन आपरेशंस का कोई अनुभव होता है, और न ही उनकी ऐसी कोई पृष्ठभूमि होती है, जिससे रेलों की संरक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है. पहले की व्यवस्था में इन पोस्टों पर सिर्फ तकनीकी और आपरेटिंग अधिकारियों को ही पदस्थ किया जाता था, उसे ही पुनः स्थापित किए जाने की जरूरत है..!" Agenda item-9.. "The present system of general posts like DRMs and GMs being thrown up to all departments who have no background or exposure in Safety-Related Train Operations has undermined safety in the Railways. The earlier system of only Operating and Technical Officers being considered for such posts need to be restored." अब एफसी को यह कौन बताएगा की मैसूर डिवीजन का हाल क्या है और सोलापुर डिवीजन के डीआरएम को सीआरबी का 'कान्फिडेंशियल नोट' क्यों मिला? उसे भी उन्होंने शायद इसलिए खो दिया कि उनसे कोई क्या पूछेगा अथवा उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा. जिन्हें हमेशा दूसरे अधिकारियों की अपेक्षा ज्यादा संरक्षण इसीलिए मिलता है, क्योंकि वह एकाउंट्स वाले होते हैं. इसीलिए टेंडर कमेटी में अपनी तथाकथित श्रेष्ठता या वरीयता साबित करने के लिए अन्य कमेटी मेम्बर्स के समकक्ष ही एकाउंट्स मेम्बर दिए जाने की अपेक्षा न सिर्फ उनसे एक ग्रेड नीचे वाला लेखा अधिकारी दिया जाता है, बल्कि कोई गलती होने पर उसकी सामान जिम्मेदारी भी तय नहीं की जाती है. इस बात की शिकायत बाकी सभी कैडर के अधिकारियों को हमेशा से रही है. सेफ्टी कमेटी की मीटिंग में एफसी द्वारा अपनी और अपने विभाग की इसी तथाकथित श्रेष्ठता को एक बार फिर अपनी गर्दन ऊँची करके उजागर किया गया है, जिससे वह अन्य सभी कमेटी मेम्बर्स के बीच हंसी का पात्र बनी हैं. एफसी और उनके तमाम लेखाधिकारी रेलवे में डीआरएम और जीएम तो बनना चाहते हैं, मगर वह रेलवे के मातहत नहीं रहना चाहते. सच तो यह है कि डीआरएम और जीएम बनने के लिए ही लेखा विभाग के अधिकारीगण रेलवे में शामिल हुए थे, परन्तु उनके एफसी का पद आज भी वित्त मंत्रालय के अधीन है. वित्त मंत्रालय के मातहत होने की वजह से ही पर्सनल और स्टोर्स की अपेक्षा एफसी उपरोक्त बात पूरे फोरम के सामने कहने की हिम्मत जुटा पाईं. सच यह भी है कि अपवाद स्वरुप एकाध को छोड़कर कोई भी लेखाधिकारी डीआरएम और जीएम बनने की लायकियत नहीं रखता. यह कहना है अन्य सभी कैडरों के अधिकारियों का.. उनका यह भी कहना है कि 'जानकारी' और 'अनुभव' में क्या अंतर होता है, जब यह भी एफसी को पता नहीं है, तो उनके कैडर की तथाकथित श्रेष्ठता सिर्फ एक मजाक का विषय हो सकती है. उनका कहना था कि जो लोग सिर्फ आंकड़ों का खेल करना जानते हैं और अपनी तथाकथित श्रेष्ठता दिखाने के लिए फाइलों एवं टेंडर प्रस्तावों को अटकाना जानते हैं, उन्हें फुट प्लेटिंग और डे-नाइट जनरल एंड विंडो इंस्पेक्शन की बारीकियों की आवश्यक जानकारी भी नहीं होती. ऐसे में उनके डीआरएम और जीएम बनने पर बाकी तकनीकी कैडर के अधिकारी सिर्फ अपना सिर धुनते रहते हैं, क्योंकि उन्हें तकनीकी बारीकियां समझाते-समझाते तकनीकी अधिकारी खुद पागल हो जाते हैं. तथापि अब वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी को ही यह तय करना है कि वह अपनी सिफारिशों पर अडिग रहती है, या वह भी अपने वेतन-भत्ते पाने और उन्हें पास कराने के लिए एफसी के दबाव में आकर अपनी उक्त सिफारिश को 'डायल्यूट' कर देती है..! 
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राधेश्याम के साथ अन्याय, 
एफसी और तीन जीएम की पोस्टिंग  

क्या होगा हाई लेवल सेफ्टी 

रिव्यू कमेटी की सिफारिश का..? 

नयी दिल्ली : सोमवार, 26 दिसंबर को रेलवे बोर्ड ने तीन जीएम और एफसी की पोस्टिंग के आर्डर जारी कर दिए. इसके अनुसार एक बार फिर रेलवे बोर्ड के बाबुओं और कुछ निहितस्वार्थी तत्वों ने अपनी मनमानी कर ली है. जहाँ श्री अभय खन्ना के दावे को दरकिनार करके जीएम/एनएफआर/कंस्ट्रक्शन सुश्री विजयाकांत को फाइनेंस कमिश्नर/रेलवेज (एफसी/रेलवेज) बना दिया गया है, वहीँ मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण/उ.रे. (सीएओ/सी/उ.रे.) रहे श्री राधेश्याम (आईआरएसई) को ओपन लाइन, दक्षिण पश्चिम रेलवे, हुबली, में भेजे जाने के बजाय प्रोडक्शन यूनिट, चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (सीएलडब्ल्यू), का महाप्रबंधक (जीएम) बनाकर भेज दिया गया है. जबकि स्टोर ऑफिसर श्री ए. के. मित्तल (आईआरएसएस) को ओपन लाइन, दक्षिण पश्चिम रेलवे, हुबली, का जीएम बनाया गया है और प्रधान मुख्य अभियंता (पीसीई) दक्षिण पूर्व रेलवे. रहे श्री बी. पी. खरे (आईआरएसई) को बतौर जीएम डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (डीएलडब्ल्यू) भेजा गया है. 

रेलवे बोर्ड पूर्व की तमाम सेफ्टी कमेटियों की सिफारिशों को अबतक लगातार नजरअंदाज करता आया है, और अब उसने 5 दिसंबर को हुई वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी की मीटिंग के एजेंडा आइटम नंबर-9 को भी सिरे से अनदेखा कर दिया है. 'रेलवे समाचार' को प्राप्त हुए वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी की मीटिंग के एजेंडा और मिनिट्स के अनुसार कमेटी के एजेंडा आइटम नंबर-9 में स्पष्ट कहा गया है कि - "वर्तमान व्यवस्था में डीआरएम और जीएम जैसी पोस्टों को सभी विभागों के लिए खोल दिया गया है, जिन्हें न तो संरक्षा सम्बन्धी ट्रेन आपरेशंस का कोई अनुभव होता है, और न ही उनकी ऐसी कोई पृष्ठभूमि होती है. इससे रेलों की संरक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है. जैसे पहले की व्यवस्था में इन पोस्टों पर सिर्फ तकनीकी और आपरेटिंग अधिकारियों को ही पदस्थ किया जाता था, उसे ही पुनः स्थापित किए जाने की जरूरत है..!" Agenda item-9.. "The present system of general posts like DRMs and GMs being thrown up to all departments who have no background or exposure in Safety-Related Train Operations has undermined safety in the Railways. The earlier system of only Operating and Technical Officers being considered for such posts need to be restored." 

रेलवे बोर्ड ने उपरोक्त आइटम अथवा सिफारिश को पूरी तरह नजरअंदाज किया है और मित्तल ने मित्तल को फेवर किया है तथा सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड ने अपने स्वार्थ के लिए श्री राधेश्याम को प्रोडक्शन यूनिट में धकेल दिया है. वरना कोई कारण नहीं था कि सीनियर होने के बावजूद उन्हें ओपन लाइन के बजाय प्रोडक्शन यूनिट में भेजा जाता. अगर ऐसा नहीं था, तो इसी प्रस्ताव के साथ जीएम/एनएफआर/कंस्ट्रक्शन और जीएम/उ.रे. की पोस्टों को भी क्यों नहीं शामिल किया गया? मंत्री का आशीर्वाद प्राप्त सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड अपनी जुगाड़ में हैं, और अब वह श्री राधेश्याम से जूनियर होते हुए भी ओपन लाइन में उ. रे. के जीएम बनकर बैठना चाहते हैं. जबकि उनसे सीनियर श्री राधेश्याम सिविल इंजीनियर होते हुए भी प्रोडक्शन यूनिट, वह भी विद्युत इंजन बनाने वाली यूनिट, में बिजली के तार जोड़ते बैठेंगे. उधर तमाम सेफ्टी कमेटियों की सिफारिशों और भारतीय रेल की सेफ्टी रसातल में पहुँच जाने को नजरअंदाज करते हुए सीआरबी ने अपने 'बिरादरी भाई' श्री ए. के. मित्तल को ओपन लाइन का जीएम बनाकर अपने बड़े भाई महातिकड़मी पूर्व सीआरबी द्वारा चलाए गए 'बिरादरीवाद' की परंपरा को ही आगे बढ़ाया है. 

इस तरह वरिष्ठ, अनुभवी और योग्य मानव संसाधन को सत्ता द्वारा पुरस्कृत रेलवे बोर्ड के बाबू लोग उर्फ़ नौकरशाह अपने निहितस्वार्थों के चलते बरबाद कर रहे हैं, और इस तरह वह नीचे तक एक गलत सन्देश भेजकर तमाम रेल अधिकारियों और कर्मचारियों में न सिर्फ हीनभावना तथा अवसाद की स्थिति पैदा कर रहे हैं, बल्कि उनमें बिना काम किए सिर्फ तिकड़म और जोड़तोड़ करके पद और पदोन्नति हासिल करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा भी दे रहे हैं...!! 
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Tuesday, December 13, 2011


व्यभिचार का अड्डा बना रेल भवन 

नयी दिल्ली : भारतीय रेल का प्रतिष्ठित मुख्यालय 'रेल भवन' कुछ अधिकारियों के कदाचार और व्यभिचार का अड्डा बन गया है. बताते हैं कि यहाँ डिप्टी डायरेक्टर स्तर के कुछ अधिकारियों का एक गुट या गिरोह है, जो रेलवे बोर्ड में कार्यरत कुछ घाघ किस्म की महिला कर्मियों को अपने साथ मिलाकर व्यभिचार का एक बड़ा रैकेट चला रहा है. इस गुट का रिंग लीडर एक एएम स्तर का अधिकारी बताया गया है. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि यह रिंग लीडर पहले यह देखता है कि कौन सी महिला कर्मी उसके जाल में आसानी से फंस सकती है. इसके बाद वह उसे किसी न किसी बहाने से अथवा कोई फाइल लेकर अपने चेम्बर में बुलाता है. फिर बड़े प्यार से उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहता है. फिर उसके लिए चाय-काफी का आर्डर करता है. इसी बीच वह उक्त महिला कर्मी के हाल-चाल पूछता है. परिवार में कौन-कौन है, शादी की है या नहीं, बच्चे कितने हैं, यह पूछकर उसके साथ अपनी आत्मीयता प्रदर्शित करता है. इसके बाद बड़ी मासूमियत के साथ धीरे से उसके शारीरिक गठन की तारीफ कर देता है. इसके बाद यदि महिलाकर्मी ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह समझ जाता है कि उससे यह काम नहीं होगा और यदि महिला अपनी तारीफ सुनकर थोड़ी भी बेतकल्लुफ हो जाती है, तो वह आगे भी साहस करके शुरू हो जाता है, वाह.. वाह.. क्या बात है, दो बच्चे होने (या नहीं होने पर भी) के बाद भी आपने अपने को बहुत मेनटेन करके रखा है.. आप अपना और अपने फिगर का शायद बहुत ध्यान रखती हैं.. आपको अगर कोई परेशानी हो तो हमें बताना.. चलो कभी लंच पर चलते हैं.. और फिर यह कहते हुए कि चिंता मत करो, हम आपको घर पर ड्राप कर देंगे.. आदि-आदि.. से लेकर धीरे-धीरे यह बात और मुलाकात देर रात के डिनर और होटलबाजी तक पहुँच जाती है. सूत्रों कहना है कि इस रिंग लीडर का महिलाकर्मी को पटाने का यह सिलसिला कई दौर तक चलता रहता है, और अगर वह यह महसूस करता है कि यह काम उसके वश का नहीं है, तो वह यह काम अपने गुट के किसी अन्य साथी अधिकारी को अथवा गुट की ही किसी महिला सहकर्मी को सौंप देता है. 

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस रिंग लीडर के साथ इस व्यभिचार में सिर्फ रेलवे बोर्ड के ही कुछ अधिकारी नहीं, बल्कि कार्मिक एवं गृह मंत्रालय के भी कुछ समकक्ष अधिकारी शामिल हैं. सूत्रों का कहना है कि हाल ही में एक ऐसा ही मामला उजागर हुआ है. बताते हैं कि एक बंगाली महिला सेक्शन आफिसर इस गुट के एक डिप्टी डायरेक्टर के चंगुल में फंस गई थी. जिसने पहले तो काफी दिनों तक उसका शारीरिक शोषण किया, फिर एक दिन धोखे से उसकी अश्लील सीडी बना ली और उसे ब्लैकमेल करने लगा. सूत्रों का कहना है कि उसकी यह ब्लैकमेलिंग पैसे के लिए नहीं, बल्कि गुट के और अन्य मंत्रालयों के इस गुट में शामिल अधिकारियों के साथ भी सम्बन्ध बनाने के लिए उसका इस्तेमाल करने हेतु होती थी. सूत्रों का कहना है कि उसकी इस ब्लैकमेलिंग से जब यह बंगाली महिला सेक्शन आफिसर काफी तंग हो गई, तब एक दिन उसने अपने एक पुरुष मित्र से इसकी चर्चा कर दी. सूत्रों ने बताया कि यह बात सुनकर उसके इस पुरुष मित्र को बहुत गुस्सा आया और उसने तत्काल इस डिप्टी डायरेक्टर को सबक सिखाने की ठान ली. बताते हैं कि उक्त बंगाली महिला सेक्शन आफिसर का यह पुरुष मित्र उसी दिन डीजी/आरपीएफ के चेम्बर में गया और उन्हें सारी बात बताई. सूत्रों का कहना है कि यह सब सुनकर आगबबुला हुए डीजी/आरपीएफ ने उक्त डिप्टी डायरेक्टर को फ़ौरन तलब कर लिया और अपने चेम्बर में बैठा लिया तथा उससे चेम्बर से बाहर गए बिना ओरिजिनल सीडी तत्काल मंगाने को कहा. वरना उसे ऐसे केस में जेल भेजवाने की धमकी दी कि उसकी कभी जमानत तक नहीं होगी. इसके बाद बताते हैं कि इन डिप्टी डायरेक्टर महोदय की रूह कांपने लगी और उन्होंने तत्काल आदेश का पालन करते हुए अपने गुट के ही एक अन्य अधिकारी को मोबाइल पर काल करके उक्त सीडी फ़ौरन लेकर डीजी/आरपीएफ के चेम्बर में आने को कहा. सूत्रों का कहना है कि यह सारा घटनाक्रम कुछ इतनी तेजी से घाटा कि बोर्ड में किसी को कानो-कान भनक भी नहीं लग सकी. 

उल्लेखनीय है कि एक ऐसा ही व्यभिचार इस्टेट एंट्री रोड स्थित रेल निवास में कुछ समय पहले पकड़ा गया था. जिसमे बताते हैं कि रेलवे बोर्ड के एक डिप्टी डायरेक्टर और गृह मंत्रालय के एक डिप्टी सेक्रेटरी के साथ रंगेहाथ पकड़ी गई महिलाकर्मी रेलवे बोर्ड की ही थी, मगर इस पूरे मामले को गृह मंत्रालय के डिप्टी सेक्रेटरी ने अपनी पहुँच के बल पर तत्काल रफादफा करा लिया था. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड के उक्त रिंग लीडर और उसके साथी कुछ डिप्टी डायरेक्टरों के इस व्यभिचारी गुट में महिला टेलीफोन आपरेटर, लायब्रेरियन, रिसेप्शनिष्ठ, सेक्शन आफिसर और उनके नीचे स्तर की भी कुछ महिलाकर्मी शामिल बताई गई हैं. उनका कहना है कि अब इस गुट में रिंग लीडर का ख़ास दोस्त एक अधिकारी संगठन का पदाधिकारी भी शामिल हो गया है. जिसने इस व्यभिचारी गुट की गतिविधियों को अपनी खास काबिलियत से अब और ज्यादा बढ़ा दिया है, क्योंकि अब इसने अपने साथ मुफ्त की मौज-मस्ती करने वाली डायरेक्टर एवं ज्वाइंट डायरेक्टर स्तर की अपनी नजदीकी कुछ महिला अधिकारियों को भी इस गुट में शामिल कर लिया है. हालाँकि, रेल भवन के गलियारों में अब यह चर्चा लगभग आम हो गई है, तथापि कोई भी अधिकारी इस सम्बन्ध में खुलकर कुछ भी कहने या बताने से बच रहा है. फिर भी कुछ साहसी अधिकारियों ने, दबी जबान में और उनका नाम अथवा उनकी पहचान उजागर न करने की शर्त पर ही सही, मगर रेल भवन में इस प्रकार का व्यभिचार काफी लम्बे अरसे से चल रहे होने की बात की पुष्टि की है. इन साहसी अधिकारियों ने इस व्यभिचार गुट में शामिल सभी संभावित और असंभावित महिला कर्मियों एवं अधिकारियों के नामों तक की भी पुष्टि कर दी है. 'रेलवे समाचार' द्वारा इस अत्यंत शर्मनाक खबर को उजागर करने का उद्देश्य किसी नौकरीपेशा महिला रेलकर्मी की मानहानि करना अथवा उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं, बल्कि सिर्फ यह है कि उनकी किन्हीं मजबूरियों का फायदा उठाकर और उन्हें इस व्यभिचार में घसीटकर उनका शारीरिक शोषण करने वालों पर लगाम लगाई जा सके और इसे पूरी तरह ख़त्म करके इससे प्रदूषित हो रहे रेल भवन के संपूर्ण कार्यालयीन वातावरण को स्वच्छ किया जा सके. 
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सीआरबी और बोर्ड मेम्बर्स के नाम पर उगाही 

कोलकाता : इंडियन रेलवे प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन द्वारा 27 दिसंबर को कोलकाता में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप उर्फ़ पीपीपी पर किए जा रहे सेमिनार के लिए सीआरबी और रेलवे बोर्ड के अन्य मेम्बरों के नाम पर सभी जोनल रेलों के प्रमोटी अधिकारियों से लाखों रुपये की लगभग जबरन उगाही की जा रही है. इससे सभी जोनो के प्रमोटी अधिकारी खासे नाराज़ हैं. कई जोनो के प्रमोटी अधिकारियों ने बताया कि यह उगाही उनसे यह कहकर की जा रही है कि "सेमिनार में सभी बोर्ड मेम्बर और सीआरबी आने वाले हैं, उन्हें 'खिला-पिलाकर खुश' करना है, जिससे उनके अटके हुए काम जल्दी हो जाएँगे." उनका यह भी कहना था कि फेडरेशन को पैसा उगाही का माध्यम बना दिया गया है, जबकि दिल्ली में हुए पिछले सेमिनार में उगाहे गए लाखों रुपये का हिसाब अब तक नहीं दिया गया है. उनका कहना था कि इस मामले में दिल्ली में हुई पिछली कार्यकारिणी मीटिंग में भारी विवाद हो चुका है और इसका हिसाब मांगने वाले पदाधिकारी को एक सोची-समझी साजिश के तहत रेल प्रशासन की मिलीभगत से कुछ इस तरह उत्पीड़ित कर दिया गया है कि जिससे वह अब कोई हिसाब मांगने की जुर्रत न कर सके. इन प्रमोटी अधिकारियों ने बताया कि बिलासपुर में हुई पिछली वार्षिक सर्वसाधारण सभा (एजीएम) में 'एजीएम फंड' के नाम पर प्रत्येक जोनल एसोसिएशन से दस हज़ार और प्रोडक्शन यूनिट से चार हज़ार रुपये लिए जाने का प्रस्ताव पास कराया गया था, और यह तय किया गया था कि जिस जोन को एजीएम के आयोजन का जिम्मा सौंपा जाएगा, उसे फेडरेशन द्वारा एक लाख रु. दिया जाएगा. परन्तु जब यही एक लाख रु पूर्व रेलवे ने माँगा, तो उसे एजीएम के आयोजन से ही वंचित कर दिया गया है. उनका कहना है कि इसमें एक कुटिल चाल यह थी कि जब पूर्व रेलवे प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन इस एजीएम का सारा खर्च उठा लेगा, तो फेडरेशन उस पर बकाया दिखाकर यह लाख रु. उसे नहीं देगा. प्रमोटी अधिकारियों का स्पष्ट आरोप है कि एजीएम की मद में जमा होने वाली करीब दो लाख की राशि में से एक लाख रु. आयोजक रेलवे को देकर बाकी लगभग एक लाख का क्या किया जाएगा, इसका कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं बताया गया है. बताते हैं कि पूर्व रेलवे के निर्वाचित पदाधिकारियों को दरकिनार करके उन अधिकारियों को इस एजीएम और सेमिनार के आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो चुनाव में हार गए थेऔर जोनल एसोसिएशन के मेम्बर तक नहीं हैं. इसके साथ ही द. पू. रे. को भी इस आयोजन में शामिल किया गया है. इसी से यह जाहिर है कि फेडरेशन में न तो कोई एकमत है, और न ही सर्वसम्मति से कोई काम हो रहा है. तमाम प्रमोटी अधिकारी इस बात से सहमत हैं कि अपने और अपने नजदीकी लोगों के हित में बोर्ड के कुछ अधिकारियों के साथ साठ-गाँठ करके न सिर्फ फायदा उठाया जा रहा है, बल्कि उनके हित में जोड़तोड़ करके नियम भी बदलवा लिए गए हैं. उनका कहना है कि इसके लिए बोर्ड के कुछ अधिकारियों को शराब और शबाब मुहैया कराने में लाखों रु का खर्च भी किया गया है. यही नहीं, इस बारे में सम्बंधित बोर्ड अधिकारियों के नाम का बकायदे खुलासा करके यह डींग भी हांकी जाती है कि 'हम तो थोड़ी सी चापलूसी और पटा-पुटू करके अपना काम करवाने में विश्वास रखते हैं.' यदि जरूरत पड़ी तो उन बोर्ड अधिकारियों के नाम का खुलासा भी किया जाएगा, जिनके नामो का उल्लेख खुलेआम किया जाता रहता है. प्रमोटी अधिकारियों का कहना है कि फेडरेशन द्वारा सीआरबी और अन्य बोर्ड मेम्बरों के लिए स्वागत और विदाई समारोहों तथा शराब पार्टियों का आयोजन इसके पहले कभी-भी नहीं किया गया, इससे पता चलता है कि फेडरेशन की गरिमा को किस हद तक नीचे गिराकर उसे बोर्ड मेम्बरों और अधिकारियों की चापलूसी करने वाली संस्था बनाकर रख दिया गया है. उनका कहना है कि अब यदि सीआरबी सहित सभी बोर्ड मेम्बर एक बार फिर कोलकाता में फेडरेशन के मंच पर दिखाई देते हैं, तो पूर्व रेलवे के तमाम प्रमोटी अधिकारियों ने स्थानीय मीडिया में इस बात का जमकर प्रचार करवाने की तैयारी की है, कि उनको सेमिनार में बुलाने और खिलाने-पिलाने के लिए उनके नाम पर लाखों रु. इकट्ठे किए गए थे? इसके साथ ही कई प्रमोटी अधिकारियों का यह भी कहना था कि पूर्व सीआरबी की चापलूसी के लिए जो पिछला सेमिनार कराया गया था, और पूर्व-पूर्व सीआरबी के लिए विदाई समारोह एवं शराब पार्टी का आयोजन किया गया था, वह प्रमोटियों के हित में क्या कर गए हैं, तब क्यों इस तरह से बोर्ड मेम्बर्स की चापलूसी के लिए फेडरेशन द्वारा उनसे बार-बार उगाही की जा रही है और यह रकम प्रमोटियों द्वारा कहाँ से और किससे उगाहकर फेडरेशन को दी जा रही है? इस पर बोर्ड मेम्बर्स को अवश्य विचार करना चाहिए. 
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Friday, December 9, 2011


"कदुआ पे सितुआ चोख"

दोष सीपीटीएम का, दण्डित हुआ सीनियर डीओएम 

पटना : दोष किसी का, सजा किसी को... यही होता है जब यह कहा जाता है कि हायर लेवल पर जवाबदेही या उत्तरदायित्व तय किया जाए.. तब हमेशा से यही होता आया है कि नीचे स्तर पर किसी और को बलि का बकरा बना दिया जाता है और ऊपर के लोग बच जाते हैं या बचा लिए जाते हैं और उनका साथ देने के लिए उनके सभी समकक्ष इकट्ठे हो जाते हैं, मरते हैं नीचे के लोग या जूनियर अधिकारी... यही हुआ है दानापुर मंडल, पूर्व मध्य रेलवे के सीनियर डीओएम श्री आधार सिंह (आईआरटीएस-ग्रुप 'ए') के साथ, जबकि स्पष्ट तौर पर गलती सीपीटीएम श्री संजय शर्मा की बताई जाती है. उल्लेखनीय है कि 6 दिसंबर को सांसदों के लिए फर्स्ट एसी का कोच न लगने से सांसदों ने हंगामा खड़ा कर दिया और सम्बंधित अधिकारी को निलंबित करने की मांग की थी. जिसके मद्देनज़र रेलमंत्री का आदेश था कि उच्च स्तर पर जवाबदेही तय करके सम्बंधित अधिकारी को निलंबित किया जाए. अब रेलमंत्री का आदेश था, तो किसी को तो बलि का बकरा बनाना ही था, सो सीपीटीएम के बजाय सीनियर डीओएम को बना दिया गया. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार अधिक प्रतीक्षा सूची को देखते हुए विजिलेंस की एडवाइस पर गाड़ियों में एक्स्ट्रा कोच लगाए जाने की कोई पुख्ता व्यवस्था बनाई जानी थी. इसके लिए 3 दिसंबर को सीसीएम ने सभी सीनियर डीसीएम्स को एक नोट लिखकर कहा था कि वे अपने यहाँ से चलने वाली सभी गाड़ियों की असली पोजीशन चार दिन पहले मुख्यालय भेजेंगे. तदनुसार गाड़ियों में एक्स्ट्रा कोच लगाए जाने की व्यवस्था की जाएगी. हालाँकि सांसदों के जाने की जानकारी सभी को थी, फिर भी इसकी जानकारी 3 दिसंबर से पहले भी दी जा चुकी थी. नई व्यवस्था के अनुसार सीनियर डीसीएम ने 5 दिसंबर को सांसदों के लिए एक फर्स्ट एसी कोच लगाए जाने की सूचना सीपीटीएम और सीनियर डीओएम को भेज दी थी. परन्तु हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि सीपीटीएम ने सीनियर डीसीएम द्वारा भेजे गए नोट (रिक्वेस्ट-अनुरोध) को यह कहकर लौटा दिया कि यह सूचना 5 दिन पहले आनी चाहिए थी, अब कुछ नहीं होगा.. 

जबकि सच्चाई यह है कि 3 दिसंबर का आदेश 6 दिसंबर की व्यवस्था के लिए कतई लागू नहीं हो सकता था, क्योंकि इसके बीच में चार दिनों का अंतर नहीं था. क्या यह बात सीपीटीएम की समझ में नहीं आई थी? अथवा वह टैफिक के नियमो से अनभिज्ञ हैं? इसके अलावा बताते हैं कि सीनियर डीसीएम या कमर्शियल विभाग द्वारा भेजे जाने वाले लिखित नोट/मेमो की रिसीविंग ट्रैफिक कंट्रोल द्वारा नहीं दी जाती है. और यह भी बताया जाता है कि ट्रैफिक कंट्रोल की यह 'दादागीरी' आज से नहीं, बल्कि बहुत पहले से और सब जगह चल रही है. तथापि सूत्रों का कहना है कि 5 दिसंबर को सीनियर डीओएम ने 'फ्वोईस' के माध्यम से सांसदों के लिए एक एक्स्ट्रा फर्स्ट एसी कोच लगाए जाने की सूचना दी थी. यह रिकॉर्ड में है. इससे सीनियर डीओएम को किस प्रकार से गलती पर अथवा इस कोताही के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यानि सीनियर डीओएम की कोई गलती नहीं थी, और इस वजह से ही सीनियर डीसीएम श्री अरविन्द रजक बच गए हैं. 

ट्रैफिक सूत्रों का कहना है कि पटना में फर्स्ट एसी के दो एक्स्ट्रा कोच हमेशा अलग से उपलब्ध रहते हैं. तब सीपीटीएम ने यह कोच न देकर घोर लापरवाही का परिचय क्यों दिया? यह जाँच का विषय है. यह एक्स्ट्रा दो फर्स्ट एसी कोच साइड में हमेशा उपलब्ध रखने की व्यवस्था लालू यादव के समय से चली आ रही है, क्योंकि लालू ने रेल को अपने सांसदों और नेताओं की बपौती बना दिया था और इनकी आदतें बिगाड़ दी थीं. तभी से जनता के ये 'सेवकगण' स्वयं को 'मालिक' मानकर विशेष व्यवस्था का हक़दार होने का दावा खासतौर पर रेल में करते रहते हैं. बिहार में एक कहावत है कि 'कदुआ पे सितुआ चोख' यानि कि सीप की फांक भले ही काफी नाज़ुक होती है मगर फिर भी कद्दू को छील देती है. इसी प्रकार ट्रैफिक अधिकारी आपस में ही एक दूसरे की खाल छील रहे हैं. इसके अलावा यह शायद पहली बार है, कि जब इस प्रकार के मामले में किसी ग्रुप 'ए' अधिकारी को निलंबित किया गया है, क्योंकि इससे पहले इससे भी नीचे जाकर तथाकथित 'रेस्पांसिबिलिटी' फिक्स की जाती रही है और किसी प्रमोटी ग्रुप 'बी' अधिकारी को ऐसे किसी भी मामले में बलि का बकरा बनाया जाता रहा है. तथापि यदि रेलमंत्री और सीआरबी का आदेश उच्च स्तर पर 'रेस्पांसिबिलिटी' फिक्स करने का था, तो यह डिवीजन स्तर पर डीआरएम और मुख्यालय स्तर पर सीपीटीएम की तय की जानी चाहिए थी. इसमें अभी-भी बहुत ज्यादा विलम्ब नहीं हुआ है, रेलमंत्री और सीआरबी को यदि अपने आदेश की लाज रखनी है, और माननीय सांसदों को और उद्दंड बनाना है, तो उपरोक्त तमाम वस्तुस्थिति पर विचार करते हुए वाजिब निर्णय लेने में अब ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए...!! 
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साइडिंग्स में समय की हेराफेरी 

लोडिंग पार्टियों का डेमरेज बचाकर परिचालन 

अधिकारीयों की अवैध कमाई का गोरखधंधा 

चक्रधरपुर : आयरन ओर की लोडिंग से होने वाली 'कमाई' लगभग ख़त्म हो जाने से दक्षिण पूर्व रेलवे के चक्रधरपुर मंडल की करीबन सभी साइडिंग्स में रेकों के आने और उनके प्लेसमेंट की टाइमिंग्स में हेराफेरी करके अवैध कमाई के नए जरिए निकाल लिए गए हैं. बताते हैं कि इस हेराफेरी में मुख्यालय से लेकर मंडल तक के लगभग सभी सम्बंधित परिचालन अधिकारी शामिल हैं. विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार चक्रधरपुर मंडल की देवझार साइडिंग में दि. 19.08.2011 कि रात 12.05 बजे एक पार्टी का रेक पहुंचा था, जिसका प्लेसमेंट करीब सवा छह घंटे बाद दि. 20.08.2011 कि सुबह 6.20 बजे दिखाया गया था. इसी प्रकार इसी साइडिंग में इसी तारीख को जिंदल का एक रेक 22.25 बजे पहुंचा था, जबकि इस बॉक्स एन रेक को दि. 20.08.2011 की सुबह 4.15 बजे प्लेस दिखाकर लगभग छह घंटे का डेमरेज भरने से पार्टी को बचा लिया गया. इसके अलावा दि. 06.09.2011 को बाराजाम्दा स्टेशन पर कोर मिनरल्स का एक रेक शाम 5.09 बजे पहुंचा था. इसका प्लेसमेंट अगले दिन सुबह 6.09 बजे दर्शाया गया. इस प्रकार पार्टी का करीब 13 घंटे का डेमरेज बचाया गया और रेलवे को इस तरह से लाखों का चूना लगाया गया है. 

मंडल के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि कमोबेस यही स्थिति नोवामुंडी साइडिंग की भी है. सूत्रों का कहना है कि यहाँ भी कई पार्टियों का डेमरेज बचाकर रेलवे को भारी नुकसान पहुँचाया जा रहा है. जिसकी एवज में सम्बंधित परिचालन अधिकारियों की बड़ी मात्रा में अवैध कमाई हो रही है. सूत्रों ने बताया कि लोडिंग पार्टियों का डेमरेज बचाने के लिए ही उनके रेकों के प्लेसमेंट के समय में हेराफेरी करके यह सारा गोरखधंधा चल रहा है. सूत्रों का कहना है कि यह सारा गोरखधंधा यहाँ एक दलाल द्वारा मंडल परिचालन अधिकारियों की मिलीभगत से चलाया जा रहा है. सूत्रों ने बताया कि यह दलाल वरिष्ठ मंडल परिचालन अधिकारी का बहुत करीबी है, जो कि रेड लाइट लगाकर इसके साथ अधिकाँश समय अपने चेंबर में बैठे रहते हैं. बताते हैं कि मंडल परिचालन कार्यालय के ज्यादातर कर्मचारियों को न सिर्फ इस दलाल (एजेंट) को सलाम करना पड़ता है, बल्कि उनका तो यह भी कहना है कि वे तो इस दलाल को ही अब अपना मुख्य मंडल परिचालन अधिकारी मानने लगे हैं, क्योंकि स्टाफ की मनचाही जगह ट्रांसफ़र/पोस्टिंग में भी इस दलाल की प्रमुख भूमिका रहती है. 

इस समबन्ध में नाम न उजागर करने की शर्त पर कुछ असंतुष्ट पार्टियों का कहना है कि चूँकि आयरन ओर लोडिंग की अंधाधुंध अवैध कमाई अब बंद हो गई है, इसलिए पार्टियों का डेमरेज बचाकर और रेलवे को चूना लगाकर सम्बंधित परिचालन अधिकारियों द्वारा अपनी जेबें खूब भरी जा रही हैं. उनका यह भी कहना था कि इसीलिए मंडल की सभी लोडिंग/अनलोडिंग साइडिंग्स में न सिर्फ रेकों के आने और उनके प्लेसमेंट की टाइमिंग्स में भारी हेराफेरी की जा रही है, बल्कि छोटी पार्टियों को रेक न देकर, लोडिंग/अनलोडिंग एवं प्लेसमेंट के लिए परेशान करके उन पर अकारण डेमरेज लगाया जाता है. उनका कहना है कि बड़ी पार्टियों का न सिर्फ डेमरेज बचाया जाता है, बल्कि उनसे प्रति रेक वसूली अलग से की जाती है, जिससे सम्बंधित अधिकार खूब मालामाल हो रहे हैं. 

इस पूरे प्रकरण पर 'रेलवे समाचार' ने सम्बंधित परिचालन अधिकारियों पक्ष जानने की बहुत कोशिश की, मगर उन्होंने काल रिसीव नहीं किया. चक्रधरपुर मंडल के सीनियर डीओएम श्री मनोज कुमार और सीनियर डीसीएम श्री हालदार से जब उनके मोबाइल पर बात करने की सारी कोशिशें विफल रहीं, तब इस सम्बन्ध में मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) श्री अचल खरे को मोबाइल पर बात करके उपरोक्त सारी हेराफेरी की विस्तृत जानकारी देकर उन्हें मामले की गंभीरता से अवगत कराया गया. तत्पश्चात उन्हें एसएमएस से भी सारी जानकारी दी गई. श्री खरे ने यह जानकारी देने के लिए 'रेलवे समाचार' को धन्यवाद् देते हुए कहा कि वे इसकी पूरी छानबीन करवाएँगे, क्योंकि उन्हें इस बारे में फ़िलहाल कोई जानकारी नहीं है. 
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Monday, December 5, 2011


सरकारी साइडिंग से निजी कंपनियों को 
अवैध रूप से दी जा रही है लोडिंग अनुमति  
बिलासपुर : कुछ कंपनियों को सरकारी (एनटीपीसी) साइडिंग से लोडिंग और कुछ कंपनियों को सरकारी (रेलवे) जमीन पर साइडिंग बनाने की अनुमति देकर कुछ ट्रैफिक अधिकारियों द्वारा इन निजी क्षेत्र की कंपनियों को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है. यही नहीं, इन कंपनियों को करोड़ों रुपये का लाभ पहुंचाकर इनमे या तो इन अधिकारियों द्वारा हिस्सेदारी की जा रही है, या फिर इनसे अपनी 'हिस्सेदारी' वसूल की जा रही है. ज्ञातव्य है कि इन ट्रैफिक अधिकारियों ने सैकड़ों करोड़ के सालाना टर्नओवर वाले कुछ ऐसे कार्पोरेट घराने खड़े कर दिए हैं, जो कल तक रेलवे की साइडिंग या गुड्स शेडों में लोडिंग/अनलोडिंग कांट्रेक्टर हुआ करते थे अथवा दो-चार रेक की लोडिंग किया करते थे. अब यही लोग बड़ी कंपनियों के मालिक बनकर उन ट्रैफिक अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद अपनी कंपनियों में नौकरी पर रख रहे हैं, जिन्होंने रेलवे की नौकरी में रहते हुए इन्हें पर्याप्त लाभ पहुँचाया था तथा ये पूर्व ट्रैफिक अधिकारी इन निजी कंपनियों के नौकर होकर अब अपनी पुराणी जगहों पर पदस्थ अपने जूनियर्स की मदद से न सिर्फ निजी कंपनियों को भरी फायदा पहुंचा रहे हैं, बल्कि अपने जूनियर्स को भी दबाव में लेकर भ्रष्ट बना रहे हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ कंपनियों की अपनी कोई साइडिंग नहीं है. परन्तु रेलवे बोर्ड और जोन तथा मंडलों के कुछ ट्रैफिक अधिकारियों की मेहरबानी से इस कंपनी को बिलासपुर के पास स्थित एनटीपीसी की सरकारी साइडिंग से कोयला लोडिंग की अनुमति मिली हुई है. जो कि गैर-क़ानूनी है. बताया जाता है कि एनटीपीसी की इस साइडिंग से इन कंपनियों द्वारा प्रतिमाह सैकड़ों रेक कोयले की लोडिंग की जाती है. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड और जोन के ट्रैफिक अधिकारियों द्वारा एनटीपीसी को अपनी साइडिंग से अन्य कंपनियों को लोडिंग करने देने के लिए 'को-यूजर' परमीशन दी जाती है, जो कि पीएफटी पॉलिसी आने के बाद पूरी तरह गैर-क़ानूनी है. क्योंकि एनटीपीसी की निजी साइडिंग को पीएफटी में कन्वर्ट करने के बाद ही इससे अन्य कंपनियों को लोडिंग की छूट दी जा सकती है. सूत्रों का कहना है कि यह गोरखधंधा वास्तव में काफी समय से नीचे से ऊपर तक की मिलीभगत से चल रहा है. सूत्रों के अनुसार निजी कंपनियों द्वारा एनटीपीसी की साइडिंग से लोडिंग करने के लिए प्रति रेक लाखों रु. की राशि जोन और रेलवे बोर्ड के ट्रैफिक अधिकारियों को पहुंचाई जाती है..? 

रेलवे की जमीन पर साइडिंग बनाकर मालामाल हुई कंपनी 
प्राप्त जानकारी के अनुसार एक कंपनी ने कुछ ट्रैफिक अधिकारियों की मिलीभगत से रायपुर के पास सिलियरी में और रायगढ़ के पास भूपदेवपुर में रेलवे की जमीन पर अपनी दो साइडिंग बनाकर इन बीते पांच सालों में ही अपनी ग्रोथ को कई गुना बढ़ाया है. बताते हैं कि सिलियरी साइडिंग से इस कंपनी द्वारा प्रतिमाह 35 से 40 रेक और भूपदेवपुर साइडिंग से प्रतिमाह 55 से 60 रेक की लोडिंग की जाती है. सूत्रों के अनुसार रेलवे की जमीन पर निजी पार्टियों/कंपनियों को अपनी निजी साइडिंग बनाने की अनुमति नहीं है. इस कंपनी द्वारा रेलवे की जमीन पर बनाई गई उक्त दोनों साइडिंग पूरी तरह गैर-क़ानूनी है. यहाँ इस मामले में रेलवे के ट्रैफिक विशेषज्ञों की राय ज्यों की त्यों प्रस्तुत है..

As per Railways Policy, the private sidings were allowed to be developed by end-users. These private sidings were meant to be used by the end user himself who has constructed the siding. But if Railways permission was taken, the siding could be used by third parties also. This arrangement was called as ‘co-user’; in which the siding owner and user had to apply to the railways to allow certain specific party as ‘co-user’. Railways used to examine this request on case to case basis for every third party and used to allow the ‘co-user’ status for a specified period or regret it as the case may be.

For construction of private siding, the intending party MUST be an end user, ie. Either an industry or mine owner, etc., who intends to use the same for his own business. 

Before construction of private siding, party has to obtain RTC (Rail Transport Clearance) from Railway Board. This RTC was granted/rejected by the Railway Board after examining the likely traffic to be dealt in the proposed siding by the end user. The intending party had to provide the full detail of its production plans, the likely inward and outward traffic along with the originating and destination stations for the same. Here again the RTC could be granted to the end user only. 

Referenced companies are not an end users. Thus they neither should have been issued RTC nor should have been allowed to construct the private siding. 

It is most unfortunate that the party who should not have been allowed to construct private siding even on private land had been allowed to construct the same on railway land flouting all rules and regulations. 

Further, after the issue of the PFT Policy (FM Circular No. 14 of 2010) as amended, all the private sidings handling third party cargo MUST convert to PFT. Thus on date there cannot be a private siding handling ‘third party cargo’ unless it has been converted into a PFT. 
But in case of above refered companies, this conversion into PFT is not possible as PFT can only be on private land and a particular company is functioning on Railway land. 
This continuance of that particular company is totally illegal. 

Note: Last two paragraphs apply to NTPC, Sipat also. As on date their siding cannot be used by ‘third-party’ as ‘co-user’. Unless the siding of NTPC is converted into PFT its use by third party is illegal. 

उपरोक्त स्पष्टीकरण से यह एकदम स्पष्ट है कि न सिर्फ उक्त कंपनी की रेलवे की जमीन पर बनाई गई उपरोक्त दोनों साइडिंग अवैध और गैर-क़ानूनी हैं बल्कि निजी कंपनियों को एनटीपीसी की साइडिंग से रेल अधिकारियों द्वारा दी जा रही लोडिंग सहूलियत भी अवैध एवं गैर-क़ानूनी है. सूत्रों का कहना है कि इन सारी सहूलियतों को ख़त्म कर देना रेलवे बोर्ड और जोन के ही अधिकार में है, मगर यहाँ यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि इन अवैध गतिविधियों को बंद कराने की अपेक्षा रेलवे की जमीन पर अवैध एवं गैर-क़ानूनी रूप से दो साइडिंग बना लेने वाली कंपनी को और चार साइडिंग बनाने की अनुमति जोन के दायरे में दे दी गई है, जिनका निर्माण काफी जोरशोर से चल रहा है. यही नहीं, इसकी मांग पर इसे बढाकर प्रतिमाह 100 रेक लोड करने की अनुमति भी दे दी गई है, जो कि काफी लम्बे अरसे से पेंडिंग थी.. 

चूँकि रेलवे के कई कार्यरत और सेवानिवृत्त ट्रैफिक अधिकारियों का पैसा उपरोक्त प्रकार की तमाम कंपनियों में लगा हुआ है, और चूँकि कई अन्य अथवा जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों को इनसे भरपूर लाभ मिल रहा है, तथा कई सेवानिवृत्त ट्रैफिक अधिकारी इन कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं, इसलिए इन कंपनियों का कारोबार दिन दुनी-रात चौगुनी तरक्की कर रहा है और सबको समान रूप से उसका वाजिब हिस्सा भी मिल रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार विमला लाजिस्टिक के एक डायरेक्टर श्री एम. के. मिश्रा, रेलवे बोर्ड में एडीशनल मेम्बर/कमर्शियल रहे हैं. इसी प्रकार केएसके एनर्जी में कंसल्टेंट की नौकरी जीएम/द.म.रे. रहे श्री एम. एस. जयंत कर रहे हैं. जबकि बिजुरी और अनूपपुर की साइडिंग से कोयले की लोडिंग करने वाली माँ शारदा इंटरप्राइजेज के कंसल्टेंट पूर्व सीसीएम/द.पू.म.रे. श्री राधाचरण हैं. अब अगर इतने तथ्यों के बाद भी रेलवे बोर्ड को अक्ल नहीं आती है, तो इन पर अन्य जाँच एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए. 
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और तीन जीएम का प्रस्ताव भेजा 

गया, एफसी के प्रस्ताव पर विवाद 

दक्षिण पश्चिम रेलवे/हुबली, डीएलडब्ल्यू /वाराणसी और सीएलडब्ल्यू /चितरंजन के जीएम का प्रस्ताव रेलवे बोर्ड द्वारा भेज दिया गया है. परन्तु करीब एक महीना होने जा रहा है, इस प्रस्ताव का कोई अता-पता नहीं है. पता चला है कि यह प्रस्ताव कैबिनेट सेक्रेटरी के पास पड़ा है, क्योंकि इस पर विवाद है कि श्री राधेश्याम को ओपन लाइन के बजाय प्रोडक्शन यूनिट में क्यों भेजा जा रहा है, जबकि वह एमई पद के भावी उम्मीदवार हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार जीएम/द.प.रे. के लिए श्री ए. के. मित्तल, जीएम/डीएलडब्ल्यू के लिए श्री बी. पी. खरे और जीएम/सीएलडब्ल्यू के लिए श्री राधेश्याम के नाम का प्रस्ताव किया गया है. उल्लेखनीय है कि स्टोर सर्विस के श्री मित्तल 31 जुलाई 2016 को रिटायर होंगे और अगर उनकी किस्मत ने उनका साथ दिया, तो सीआरबी पद पर मित्तल को मित्तल ही रिप्लेस कर सकते हैं. उधर आश्चर्य की बात यह है कि 30 नवम्बर को खाली हो रही जीएम/सीएलडब्ल्यू की पोस्ट को तो भेजे गए प्रस्ताव में शामिल किया गया, परन्तु इसी समय एफसी पद पर पदस्थ होने के बाद खाली होने वाली एक और जीएम की पोस्ट को इस प्रस्ताव में शामिल क्यों नहीं किया गया, यह लोगों की समझ में नहीं आया है. मगर इससे ऐसा लगता है कि फ्यूचर एमई बनने की कोशिशें अभी से शुरू हो गई हैं. इसके अलावा एफसी के लिए भेजे गए प्रस्ताव में जीएम/एनएफआर कंस्ट्रक्शन श्रीमती विजयाकांत और जीएम/आईसीएफ श्री अभय खन्ना के नाम भेजे गए हैं. परन्तु हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि श्रीमती विजयाकांत का नाम श्री अभय खन्ना से एक पैनल जूनियर होने के बावजूद प्रस्ताव में न सिर्फ ऊपर है, बल्कि उन्हीं के नाम की सिफारिश भी मंत्री द्वारा की गई है. पता चला है कि श्री खन्ना ने इस पर अपना ज्ञापन यह कहते हुए प्रधानमंत्री को सौंपा है कि एफसी पर ऐसा कोई क्रायटेरिया लागू नहीं है, इसके अलावा वह श्रीमती विजायाकांत से एक पैनल (2009-10) सीनियर हैं और उनकी सीनियारिटी खुद प्रधानमंत्री ने ही सुनिश्चित की है. ऐसे में उन्हें एफसी पद से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार 30 नवम्बर को श्रीमती पम्पा बब्बर के रिटायर होने और श्री खन्ना के ज्ञापन के बाद विवाद हो जाने पर एएम/फाइनेंस श्रीमती दीपाली खन्ना को अगले तीन महीने के लिए एफसी पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया है. बताते हैं कि यह आदेश 30 नवम्बर को ही निकाल दिया गया था. इसका मतलब यह है कि बोर्ड को उपरोक्त दोनों अधिकारियों को एफसी बनाना ही नहीं था, यह पहले से ही तय था. बोर्ड के इस चालाकी भरे निर्णय से श्रीमती दीपाली खन्ना के लिए तो न सिर्फ बिल्ली के भाग्य से छींका टुटा, बल्कि दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा, वाली दो-दो कहावतें चरितार्थ हुई हैं. उल्लेखनीय है कि इस दौरान रेल बजट का सारा काम पूरा कर लिया जाएगा, और उसके बाद उन्हें उनकी पुरानी जगह दिखा दी जाएगी, शायद ऐसा नहीं होगा.. यह कहना है हमारे सूत्रों का. क्योंकि उनका यह फायदा उनके अक्तूबर 2012 में रिटायर्मेंट तक भी जारी रह सकता है. तथापि पीएम और पीएमओ को ब्लैकमेल करके उनसे अपने मन-मुताबिक निर्णय करा लेने की ममता बनर्जी की जैसी ख्याति बन गई है, उसे देखते हुए यदि इस बार भी वह पीएम से श्रीमती विजयाकांत के पक्ष में निर्णय करा लें, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. आखिर उनके मंत्री ने श्रीमती विजयाकांत के नाम की ही सिफारिश की है, जो कि जून 2013 में रिटायर होंगी. 
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प्रमोटी अधिकारियों की मज़बूरी.. 

भारतीय रेल के करीब आठ हजार प्रमोटी अधिकारियों का यह एक बड़ा दुर्भाग्य है कि वह न सिर्फ अपने बड़बोले और निहायत झूठे महासचिव को झेलने के लिए मजबूर हैं, बल्कि वह चाहते हुए भी न तो उनसे इस्तीफा मांग पा रहे हैं, न ही उन्हें हटा पा रहे हैं, क्योंकि अब अगले साल उनका रिटायर्मेंट है. यही कारण है कि यह महासचिव महोदय इन प्रमोटी अधिकारियों को विभिन्न मंचों-फोरमों पर न सिर्फ बुरी तरह अपमानित करवा रहे हैं, बल्कि खुद भी अपमानित होकर अपनी बिरादरी (ग्रुप 'बी') की नाक भी कटवा रहे हैं. जबकि ग्रुप 'ए' अधिकारी और अन्य श्रम संगठन यह सारी वास्तविकता जानते हुए भी चुप हैं, क्योंकि वह चुप रहकर ही अपनी गरिमा को बचा पा रहे हैं. तथापि अपने बारे में उपरोक्त तमाम सच्चाई को जानते हुए भी इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) के यह महासचिव महोदय इतने निर्लज्ज हो गए हैं कि फिर भी उनका झूठ बोलना, बरगलाना, गलत जानकारियां देना और बोर्ड मेम्बरों, सीआरबी सहित कुछ महाप्रबंधकों एवं विभिन्न विभाग प्रमुखों को अपना लंगोटिया यार बताना अथवा अपना क्लासमेट बताकर अपना रुतबा झाड़ना फिर भी नहीं छूटा है. 

हाल ही में उत्तर रेलवे बड़ोदा हाउस में एक मीटिंग के दौरान जो वाकया पेश आया, उसके बाद तो इन बड़बोले महासचिव महोदय को कहीं अपना मुंह नहीं दिखाना चाहिए था. बताते हैं कि उक्त मीटिंग में जब यह बोल रहे थे, तब कुछ अधिकरियों ने इन्हें टोका, तो इन्होंने यह कहकर उन्हें चुप करा दिया कि 'जब वह बोलते हैं तो कोई बोर्ड मेम्बर और यहाँ तक कि सीआरबी भी बीच में उन्हें टोकने की हिम्मत नहीं करते हैं.' इसके थोड़ी देर बाद ही जब इन्हें एफए एंड सीएओ/उ.रे. ने टोका, तो इन्होंने उन्हें भी वैसे ही उपरोक्त डायलाग मारने की शुरुआत की ही थी कि एफए एंड सीएओ/उ.रे. ने न सिर्फ इन्हें जोर से डांट दिया, बल्कि बताते हैं कि एक भद्दी सी गाली भी दी और कहा कि वह अपना रौब बोर्ड मेम्बरों को ही जाकर दिखाएं, यहाँ ज्यादा विशेषज्ञता झाड़ने की कोशिश न करें और अपनी हैसियत में ही रहें. इसके बाद इन महासचिव महोदय की बोलती बंद हो गई और इन्हें न तो अन्य श्रम संगठनों के पदाधिकारियों, और न ही अन्य अधिकारियों/सहभागियों में से किसी का भी समर्थन/सहयोग मिला, और यह अपना-सा मुंह लेकर रह गए थे. 

ऐसा ही एक वाकया रेलवे बोर्ड की एक मीटिंग में तब पेश आया था, जब इन्होंने नई दिल्ली स्टेशन पर प्लास्टर तोड़कर वहां नया ग्रेनाईट लगाए जाने सम्बन्धी भ्रष्टाचार की बात उठाई थी. बताते हैं कि जैसे ही इन्होंने यह बात उठाई, वैसे ही सीआरबी ने इन्हें पूरे फोरम के सामने ही यह कहकर लगभग डपटते हुए चुप करा दिया कि 'हम जानते हैं कि तुम लोग क्या करते हो, चुप रहो.. पहले अपना आचरण सुधारो, तब दूसरों की तरफ ऊँगली उठाना.' हालाँकि अंत में इनके ध्यानमग्न अध्यक्ष महोदय ने स्थिति को संभाला और प्रमोटियों की गरिमा को कुछ हद तक सुरक्षित किया. तथापि महासचिव महोदय के उच्श्रंखल आचरण से प्रमोटियों की गरिमा का जो नुकसान होना था, वह तो हो ही चुका था. 

इसके अलावा डीपीसी में डिले, बैक डेट से डीपीसी को लागू करवाने, जोनल से नेशनल सीनियारिटी बदलवाने, फिर उसमे भी मेनीपुलेशन करने, फेडरेशन को चंदा उगाही का माध्यम बना दिए जाने, तमाम बड़बोलेपन के बावजूद 5400 ग्रेड पे को अब तक हासिल न कर पाने और ग्रुप 'ए' में 50:50 प्रतिशत कोटा आरक्षण सुनिश्चित न करवा पाने और आलोचना से बचने के लिए अगले 10-20 सालों में 90 प्रतिशत प्रमोटियों के जेएजी और एसएजी में पहुँचने, जैसे प्रलोभन देकर प्रमोटियों को बरगलाने आदि-आदि, इन तमाम वास्तविकताओं से सभी ग्रुप 'बी' अधिकारियों का मोह भंग हो चुका है. फेडरेशन के कोषाध्यक्ष और एक जोन के जनरल सेक्रेटरी के साथ पिछले दिनों घटी घटना के सम्बन्ध में एक बार फिर इन महासचिव महोदय ने अपनी आदत के मुताबिक मुंबई में गलत और अत्यंत घटिया जानकारी दी. इन्होंने वहां उपस्थित अधिकारियों को बताया कि 'वह तो अच्छा हुआ कि कोषाध्यक्ष ने जिस कर्मचारी को मारा था, उसका मेडिकल नहीं कराया गया, और पुलिस केस नहीं बना, क्योंकि जिसे मारा था, उसके कान का पर्दा फट गया था, जो कि एक संगीन अपराध है, इस पर पुलिस में बहुत ही संगीन अपराधिक मामला दर्ज हो सकता था...!' जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है, क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. परन्तु यह सब लफ्फाजी करना इन महासचिव महोदय की आदत में शुमार हो गया है और अब इनकी इस आदत को बदल पाना इनके या किसी के वश में नहीं है. 

तथापि अब फेडरेशन की एजीएम कोलकाता में 26-27 दिसंबर को जिस तरह यह कराने जा रहे हैं, उसमे न सिर्फ भारी मतभेद हैं, बल्कि इस एजीएम के दौरान वहां यदि आपस में ही जूतमपैजार हो जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. इन महासचिव महोदय की यह शायद आखिरी एजीएम है, इसलिए यह पीपीपी, जिसका अब कोई औचत्य नहीं रह गया है क्योंकि यह कंसेप्ट फेल हो चुका है, पर सेमिनार के बहाने रेलमंत्री और सीआरबी सहित तमाम बोर्ड मेम्बरों को इकठ्ठा करके कुछ कर दिखाना चाहते हैं, और एक बार फिर सभी प्रमोटियों से इस बहाने लाखों रुपये इकठ्ठा कर रहे हों, तो कोई नई बात नहीं होनी चाहिए. जबकि बताते हैं कि अभी तक पिछले सेमिनार में इकठ्ठा की गई लाखों रुपये की राशि का कोई हिसाब-किताब नहीं हुआ है. परन्तु जब पूर्व रेलवे, जहाँ यह एजीएम और सेमिनार करवाया जा रहा है, आयोजक/मेजबान नहीं है, और दक्षिण पूर्व रेलवे के तमाम प्रमोटी अधिकारी ही सहमत/एकजुट नहीं हैं, और आयोजक के तौर पर ही भारी विवाद है, तब ऐसे में उपरोक्त बोर्ड मेम्बर और अन्य मान्यवर इस अवसर पर उपस्थित होकर शायद अपनी गरिमा ही गंवाएँगे. 
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Sunday, November 13, 2011


रेल किराया वृद्धि को लेकर भारी पशोपेश में रेलमंत्री 

नयी दिल्ली : रेलमंत्री श्री दिनेश त्रिवेदी आजकल बड़ी पशोपेश में हैं. रेल किराए बढ़ाए जाने को लेकर उन पर चौतरफ़ा दबाव पड़ रहा है. रेलमंत्री पर यह दबाव वित्त मंत्रालय, योजना आयोग और रेलवे बोर्ड के बाबुओं तथा रेलवे के मान्यता प्राप्त श्रम संगठनों की तरफ से पड़ रहा है, जो कि रेल किरायों में कम से कम 30% की बढ़ोत्तरी अविलम्ब चाहते हैं. परन्तु केंद्र में सत्ता की प्रमुख भागीदार तृणमूल कांग्रेस की मुखिया एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और वास्तविक रेलमंत्री ममता बनर्जी नहीं चाहती हैं कि डीजल-पेट्रोल की बढ़ी कीमतों का पुरजोर विरोध करने और इस मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापसी तक की घोषणा कर डालने के बाद रेल किरायों में वृद्धि का ठीकरा उन पर और उनकी पार्टी पर फोड़ा जाए. इसलिए योजना आयोग, वित्त मंत्रालय और रेलवे बोर्ड के बाबुओं के भारी दबाव के बावजूद वह श्री त्रिवेदी को रेल किराए बढ़ाने की अनुमति नहीं दे रही हैं. रेलवे बोर्ड के तमाम बाबू लोग भी यह मानते हैं की ममता बनर्जी की सहमति मिले बगैर किराए बढ़ाना न तो रेलवे बोर्ड और न ही केंद्र सरकार के वश की बात है. 

यह सर्वज्ञात है कि रेलवे के असीमित संसाधनों का (दुरु) उपयोग करके ममता बनर्जी ने वामपंथियों से पश्चिम बंगाल में अपनी चिरप्रतीक्षित सत्ता हासिल की है. उन्हें यह खूब अच्छी तरह पता है कि पश्चिम बंगाल में कीमतें बढ़ने और खासतौर पर रेल किराए बढ़ने पर बंगाली भद्रलोक में कितना जबरदस्त आक्रोश पैदा होता है. इसीलिए बात-बात पर सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा करके उसे ब्लैकमेल करने वाली ममता बनर्जी के लिए रेल किराए बढ़ाने की अनुमति देना आसान नहीं होगा. ज्ञातव्य है कि डीजल-पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों पर सरकार से समर्थन की घोषणा करके ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री से एक तरफ रेलवे में अपने मनमुताबिक महाप्रबंधकों की पोस्टिंग करा ली है, तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के लिए केंद्र सरकार से 19000 करोड़ रु. का विशेष पैकेज हासिल कर लिया है. 

रेलवे बोर्ड के कई अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि ममता बनर्जी की हरी झंडी के बिना रेलमंत्री श्री दिनेश त्रिवेदी रेल किराए बढ़ाए जाने के मामले में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं. हालाँकि करीब चार महीने पहले रेल मंत्रालय का कार्यभार सँभालने के बाद से श्री त्रिवेदी कई मंचों पर कह चुके हैं कि रेलवे की वित्तीय हालत बहुत ख़राब है. यही बात वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी भी कई बार कह चुके हैं. जबकि योजना आयोग ने बिना रेल किराए बढ़ाए किसी प्रकार की योजनागत राशि की मंजूरी देने से मना कर दिया है. वित्तमंत्री और योजना आयोग दोनों का मानना है कि रेल किरायों में अविलम्ब वृद्धि की जानी चाहिए, क्योंकि रेलवे की वित्तीय हालत सुधारने का इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है. योजना आयोग का तो यह भी मानना है कि रेल किरायों का एक स्थाई मेकेनिज्म बना दिया जाना चाहिए, जिससे तेल एवं बिजली की कीमतों में वृद्धि होने के बाद उसी अनुपात में रेल किराए स्वतः बढ़ा दिए जाएं. 

रेलवे बोर्ड के अधिकाँश अधिकारियों का यह भी मानना है कि तेल और ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोत्तरी अब एक सामान्य बात हो गई है, जबकि यात्रियों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए रेलवे की लागत और रख-रखाव तथा चल-अचल परिसंपत्तियों में लगातार वृद्धि करनी पड़ रही है. उनका कहना है कि रेल किरायों को तेल और ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोत्तरी से जोड़ने के बजाय रेल किराए में प्रतिवर्ष एक औसत वृद्धि का एक स्थाई तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए. इस सबके अलावा उनका यह भी मानना है कि अब बहुत हो चुका, अब रेलवे का राजनीतिक इस्तेमाल बंद होना चाहिए और इसे स्वतंत्र रूप से एक वाणिज्य परिवहन संस्थान के तौर पर चलने के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि वे रेलवे के निजीकरण की बात कह रहे हैं. 

रेल अधिकारियों का कहना है कि आम जनता यानि यात्रियों से रेल किराए बढ़ाए जाने पर रायशुमारी करने की बात ही बेमानी है, क्योंकि कोई भी भारतीय आदमी स्वतः कभी अपनी जेब पर बोझ नहीं डालना चाहता, यह इस देश की सर्वसामान्य मानसिकता है. उनका यह भी कहना था कि आम आदमी को भी यह मालूम है कि पिछले 10 सालों से रेलवे के किराए नहीं बढ़े हैं, इसलिए अब वह भी इनके बढ़ाए जाने पर सहमत हैं. उनका कहना था कि यात्री को बेहतर सहूलियतें चाहिए, अगर वह किराया बढ़ाकर नहीं देगा, तो उसे यह सहूलियतें कैसे मिल पाएंगी, यह भी वह समझता है, इसलिए वह बढ़ा हुआ रेल किराया देने के लिए खुश-ख़ुशी तैयार है. अधिकारियों का कहना था कि गत 10 वर्षों में रेल की परिचालन लागत करीब 25 से 30 प्रतिशत बढ़ गई है, जबकि गत वित्तवर्ष में रेलवे को यात्री किरायों की मद में लगभग 25000 करोड़ रु. का घाटा हुआ है, जो कि चालू वित्तवर्ष में बढ़कर करीब 35000 करोड़ रु. हो जाने का अनुमान लगाया गया है. हालाँकि उनका यह भी कहना था कि रेलमंत्री अपनी रायशुमारी भले ही कर लें, मगर इस मामले में अंतिम राय तो उन्हें कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से ही लेनी पड़ेगी. 
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विवेक सहाय, पीएमओ, डीओपीटी, 
सीवीसी और रेलवे बोर्ड को राहत 
चार-चार विजिलेंस मामले पेंडिंग होने के बावजूद पीएमओ, डीओपीटी और सीवीसी की अंदरूनी अंडरस्टैंडिंग के तहत विवेक सहाय को पहले मेम्बर ट्रैफिक और बाद में सीआरबी बनाए जाने के खिलाफ 'रेलवे समाचार' द्वारा दाखिल की गई जनहित याचिका (पीआईएल) को दिल्ली हाई कोर्ट के नए चीफ जस्टिस श्री ए. के. सिकरी और जस्टिस श्री राजीव सहाय की बेंच ने 2 नवम्बर को ख़ारिज कर दिया. इससे न सिर्फ विवेक सहाय को, बल्कि पीएमओ, डीओपीटी और सीवीसी को भी भारी राहत मिल गई है. हालाँकि कोर्ट ने इनमे से किसी को भी किसी भी प्रकार से दोषमुक्त नहीं किया है, और न ही याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई विपरीत टिप्पणी की है, और न ही कोई पेनाल्टी लगाई है. परन्तु जिस ग्राउंड पर यह याचिका पूर्व चीफ जस्टिस श्री दीपक मिश्र और जस्टिस श्री संजीव खन्ना की पीठ ने दाखिल (एडमिट) की थी, उसे नजरअंदाज करके और याचिकाकर्ता के वकीलों की पूरी बात और बहस को सुने बिना या संज्ञान में लिए बिना जिस तरह से कोर्ट ने यह याचिका मात्र दो मिनट में ख़ारिज कर दी, वह अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. कोर्ट का कहना था कि सम्बंधित अधिकारी रिटायर हो गया है और को-वारंटो का मामला नहीं बनता है, जबकि सम्बंधित अधिकारी के निकट भविष्य में रिटायर हो जाने के ग्राउंड पर यह याचिका कोर्ट ने दाखिल ही नहीं की थी, बल्कि यह याचिका तो कोर्ट ने इस ग्राउंड पर एडमिट की थी कि भविष्य में वरिष्ठ एवं योग्य अधिकारियों को दरकिनार करते हुए और विजिलेंस मामले पेंडिंग रहते हुए किसी अधिकारी को उपरोक्त उच्च पदों पर प्रमोट न किया जा सके, इस बारे में कोर्ट द्वारा दिशा-निर्देश दिए जाने के ग्राउंड पर यह याचिका एडमिट की गई थी. तब इसकी विस्तृत सुनवाई किए बिना और अपेक्षित दिशा-निर्देश जारी किए बिना इस याचिका को मात्र दो मिनट में ख़ारिज कर दिया जाना वास्तव में ही दुर्भाग्यपूर्ण है. अब इसका परिणाम यह होगा कि रेल मंत्रालय के बाबुओं और निहितस्वार्थी राजनीतिज्ञों का गठजोड़ अब और ज्यादा निरंकुश हो जाएगा. इसका ताज़ा उदाहरण श्री राजीव भार्गव का मामला है, जिन्हें प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2008-09 के जीएम पैनल में पुनर्स्थापित किए जाने के बावजूद रेलवे बोर्ड के कुछ बाबुओं और राजनीतिज्ञों ने अपने निहितस्वार्थवश दरकिनार करके रख दिया है. 

उल्लेखनीय है कि पिछली तारीख में माननीय जजों ने याचिकाकर्ता के वकीलों द्वारा सीवीसी और पीएमओ तथा डीओपीटी के अबतक जवाब दाखिल न किए जाने पर सवाल उठाए जाने पर नाराजगी जताते हुए उनके वकीलों को अपने जवाब अगली तारीख से पहले कोर्ट में दाखिल करने और इस मामले में को-वारंटो क्यों नहीं लागू हो सकता, इस पर कोर्ट को संतुष्ट करने का आदेश दिया था. पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री दीपक मिश्र और न्यायाधीश श्री संजीव खन्ना की पीठ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार यह मामला भी को-वारंटो, (रिटायर्मेंट के बाद भी नियुक्ति ख़ारिज हो जाने), का है. इस पर रेलवे के वकील श्री वेंकटरमणी ने कहा था कि यह मामला को-वारंटो का नहीं है, तब विद्वान न्यायाधीशों ने कहा था कि अगली तारीख में वह कोर्ट को संतुष्ट करें और यह भी स्पष्ट करें कि इस मामले में को-वारंटो क्यों नहीं लागू हो सकता है? इस बात का भी वर्तमान पीठ ने कोई संज्ञान नहीं लिया. इसके अलावा इस मामले में प्रधानमंत्री से फ़ाइल पर 'सब्जेक्ट टू विजिलेंस क्लियरेंस' लिखवाए जाने से लेकर चार दिनों की राष्ट्रीय छुट्टियों के दौरान सीवीसी का विजिलेंस क्लियरेंस मैनेज किए जाने और उसी दिन 28 दिसंबर 2009 को रात को 8 बजे तत्काल नियुक्ति आदेश जारी कर दिए जाने, इसके ठीक 23 दिन बाद 20 जनवरी 2010 को सीवीसी द्वारा पेंडिंग विजिलेंस मामलों की जाँच रिपोर्ट से संतुष्ट न होने और अगले 15 दिनों में जाँच करके नई जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहकर विजिलेंस क्लियरेंस वापस ले लिए जाने तथा मार्च 2010 को आरटीआई में दिए गए जवाब में सीवीसी द्वारा सम्बंधित मामलों में जाँच पेंडिंग होने की जानकारी दिए जाने, नियमानुसार प्रापर विजिलेंस क्लियरेंस के बिना नियुक्ति प्रस्ताव में सम्बंधित अधिकारी का नाम भी नहीं डाले जा सकने की प्रक्रिया आदि-आदि तमाम महत्वपूर्ण तथ्यों को भी कोर्ट ने अपने संज्ञान में लेना जरूरी नहीं समझा. यह सीधा-सीधा तिकड़मबाजी और रेलवे बोर्ड के बाबुओं एवं राजनीतिज्ञों के भ्रष्ट गठजोड़ का साफ़-साफ़ मामला था, इसके अलावा यह मामला पी. जे. थामस की सीवीसी पद पर हुई विवादास्पद नियुक्ति के समकक्ष का मामला भी था, जिससे केंद्र सरकार और खुद प्रधानमंत्री एक बार फिर से विवादों में घिर सकते थे. तथापि दुर्भाग्यवश माननीय न्यायाधीशों ने इन तमाम अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्यों पर समुचित संज्ञान न लेकर इस भ्रष्ट व्यवस्था को सुधारना जरूरी नहीं समझा, यह इस मामले का अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है. 

दो नवम्बर की तारीख के दिन कोर्ट के सामने रेलवे बोर्ड के वकील जिस तरह चहक रहे थे, जबकि पिछली तीन तारीखों में कोर्ट के सामने उनकी आवाज भी नहीं निकल रही थी, बल्कि तब तो उन पर तैयारी करके न आने, पिटीशन पढ़कर न आने और रेलवे बोर्ड द्वारा उन्हें उचित फीडबैक न दिए जाने, याचिकाकर्ता द्वारा अपनी पिटीशन में पहले ही सम्बंधित अधिकारी के 30 जून को रिटायर हो जाने की बात लिखे जाने जैसी कोर्ट की फटकार पड़ रही थी, और इसके साथ मामला बोर्ड पर आते ही पीठ का जो रवैया नजर आया, वह कुछ और ही तरफ इशारा करता है. मगर यही तो इस देश और इसकी संपूर्ण व्यवस्था की मज़बूरी है कि जहाँ वास्तव में गंभीरतापूर्वक ध्यान दिए जाने की जरूरत है, वहीँ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इस गंभीर एवं तथ्यपूर्ण मामले को जिस तरह से कोर्ट द्वारा ख़ारिज किया गया है, उससे रेलवे के लाखों अधिकारियों और कर्मचारियों को घोर निराशा हुई है. इसके अलावा उस दिन रेलवे बोर्ड के वकीलों ने जिस तरह याचिकाकर्ता का चरित्र हनन करने की कोशिश की, वह एक बार फिर विवेक सहाय की कुत्सित एवं घृणित मानसिकता का द्योतक बन गई. हमें बखूबी मालूम है कि मुंबई की एक 'मोटी और चरित्रहीन' मगर तथाकथित अंग्रेजीदां महिला पत्रकार के माध्यम से माटुंगा वर्कशाप के एक लबलबहे एसएसई से एक पेपर कटिंग मंगवाकर विवेक सहाय ने रेलवे बोर्ड के वकीलों को उसे याचिकाकर्ता के खिलाफ 'मजबूत सबूत' के तौर पर दिया था, जिसका हवाला वे कोर्ट में दे रहे थे. हालाँकि कोर्ट ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, मगर यदि कोर्ट ने ध्यान दिया भी होता, तो भी विवेक सहाय और रेलवे बोर्ड के वकील याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं कर पाते. बहरहाल, पीएमओ, डीओपीटी और सीवीसी तथा महातिकड़मी विवेक सहाय के सामने याचिकाकर्ता की हैसियत नगण्य है, मगर फिर भी इस याचिका के कारण सर्वप्रथम विवेक सहाय को सेवा विस्तार नहीं मिल पाया और तत्पश्चात सेवानिवृत्ति के पहले और बाद में भी उन्हें कहीं कोई ठिकाना नहीं मिला, यह एक संतोष की बात है. तथापि जिस तरह इस गंभीर एवं तथ्यपूर्ण याचिका को ख़ारिज किया या कराया गया है, उसे ध्यान में रखते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने की तैयारी की जा रही है. 

आखिर हुई 11 नए जीएम्स की पोस्टिंग 

रेलवे बोर्ड के बाबुओं को कब आएगी सदबुद्धि


नयी दिल्ली : आखिर करीब 10 महीने के बाद 13 जीएम्स की पोस्टिंग्स के आदेश रेलवे बोर्ड ने बुधवार, 9 नवम्बर की शाम करीब 6 बजे जारी कर दिए. इस प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री ने मंगलवार, 8 नवम्बर को सुबह 11 बजे अपने हस्ताक्षर कर दिए थे. बुधवार, 9 नवम्बर को दोपहर बाद डीओपीटी से बोर्ड पहुंची इस फ़ाइल पर आनन्-फानन कार्रवाई करते हुए बोर्ड ने तुरंत सभी 13 जीएम्स के पोस्टिंग आर्डर सिर्फ इसलिए जारी कर दिए, चूँकि अगले दिन गुरुवार, 10 नवम्बर को गुरु नानक जयंती की राष्ट्रीय छुट्टी थी, इसलिए किसी संभावित अधिकारी द्वारा इसको कोर्ट में चुनौती देकर स्टे आर्डर ले लिए जाने की भी बोर्ड को कोई आशंका नहीं थी. इसके अलावा यहाँ यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि ममता बनर्जी की ब्लैकमेलिंग के सामने एक बार फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हथियार डाल दिए. वरना कोई कारण नहीं था कि करीब एक महीने पहले लिए गए अपने ही निर्णय को नजरअंदाज करते हुए वह इन पोस्टिंग प्रस्तावों पर इस तरह हड़बड़ी में हस्ताक्षर कर देते? उल्लेखनीय है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि पर सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की ममता बनर्जी की धमकी प्रधानमंत्री द्वारा जीएम्स की पोस्टिंग के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते ही 'आगे से उनसे पूछे बिना कीमतें नहीं बढाए जाने' के सुर में बदल गई. बहरहाल, आर्डर मिलते ही सभी 13 अधिकारियों ने अपना-अपना पदभार संभाल लिया है. जैसा कि 'रेलवे समाचार' ने पहले प्रकाशित किया था, दो लेटरल ट्रांसफ़र के साथ नए पदस्थ किए गए जीएम्स के नाम इस प्रकार हैं.. 

1. श्री राजीव भार्गव, आरडब्ल्यूएफ, बंगलौर. 2. श्री अभय खन्ना, आईसीएफ, पेरम्बूर. 3. श्री बी. एन. राजशेखर, आरसीएफ, कपूरथला. 4. श्री सुबोध कुमार जैन, म. रे., सीएसटी, मुंबई. 5. श्री अरुणेन्द्र कुमार, द. पू. म. रे., बिलासपुर. 6. श्री महेश कुमार, प. रे., चर्चगेट मुंबई. 7. श्री ए. के. वर्मा, द. पू. रे., गार्डेन रीच, कोलकाता. 8. श्री जी. सी. अग्रवाल, पू. रे., फेयरली प्लेस, कोलकाता. 9. श्री एस. वी. आर्य, प. म. रे., जबलपुर. 10. श्री इन्द्र घोष, पू. त. रे., भुवनेश्वर. 11. श्री जगदेव कालिया, आरई/कोर, इलाहबाद. 12. श्री वरुण बर्थुआर, पू. रे. से पू. म. रे., हाजीपुर. 13. श्री जी. एन. अस्थाना, प. म. रे. से द. म. रे., सिकंदराबाद. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री राजीव भार्गव ने आरडब्ल्यूएफ, बंगलौर में ज्वाइन नहीं किया है. ज्ञातव्य है की 7 अक्तूबर को प्रधानमंत्री ने श्री भार्गव को वर्ष 2008-09 के जीएम पैनल में पुनर्स्थापित करते हुए उन्हें ओपन लाइन के लिए फिट कर दिया था, जिसके अनुरूप उनकी पोस्टिंग कम से कम ओपन लाइन जीएम के तौर पर होनी चाहिए थी. मगर ममता बनर्जी की ब्लैकमेलिंग के सामने मजबूर प्रधानमंत्री ने अपने ही निर्णय को नजरअंदाज करते हुए बोर्ड द्वारा भेजे गए पोस्टिंग प्रस्ताव पर ज्यों का त्यों हस्ताक्षर कर दिया. जबकि उन्होंने रेलमंत्री के निर्णय को ओवर रूल करते हुए अपना यह निर्णय लिया था. ऐसे सिद्धांतविहीन प्रधानमंत्री से क्या उम्मीद की जा सकती है जो अपनी पार्टी की राजनीतिक मजबूरियों के सामने नतमस्तक होकर अपने द्वारा ही किए गए न्याय को अन्याय में बदल देने में भी कोई देर नहीं लगाता है? ऐसे प्रधानमंत्री से सीआरबी और डीपीसी तथा एसीसी के खिलाफ कोई स्ट्रक्चर पास किए जाने और उन्हें टेकअप किए जाने की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है? इसके साथ ही जो रेलमंत्री बार-बार एक ही गलती को दोहरा रहा हो, उससे भी किसी न्याय की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. 

इसके अलावा जिन विनय मित्तल को सीआरबी बनाने का प्रस्ताव तक रेलवे बोर्ड ने नहीं भेजा था, नियम के हिसाब से कैबिनेट सेक्रेटरी ने उन्हें सीआरबी बनाया, मगर अब वह भी कैबिनेट सेक्रेटरी की बात नहीं मान रहे हैं और उन्हें धोखा देने पर उतर आए हैं. ऐसा लगता है कि खैरात में मिली सीआरबी की पोस्ट पर विराजमान श्री मित्तल एक मामूली क्लर्क या खलासी बनकर रह गए हैं, क्योंकि उन्हें यह भी समझ में नहीं आता है कि नियमानुसार जूनियर को ओपन लाइन और सीनियर को प्रोडक्शन यूनिट में नहीं भेजा जा सकता है. हालाँकि ये बात अलग है कि पिछले तीन साल से रेलवे बोर्ड और भारतीय रेल में कोई नियम-नीति रह ही नहीं गई है. तथापि इस मसले का हल वर्ष 2008-09 के पैनल से पदस्थ हुए सबसे जूनियर जीएम को एक महीने की छुट्टी पर भेजकर उसकी जगह श्री भार्गव को एक महीने के लिए पदस्थ करके सामान्य तौर पर किया जा सकता था, जैसा कि अधिकारियों को एडजस्ट करने के लिए अब अक्सर होता रहता है.. इसके बाद श्री भार्गव को अन्य किसी रेलवे में लेटरल ट्रान्सफर करके सारी स्थिति को सामान्य किया जा सकता था. मगर ऐसा तो तब होता है जब रेलवे बोर्ड में स्वस्थ मानसिकता के बाबू लोग बैठे हों, जबकि यहाँ तो वे अब अहसान फरामोशी पर उतारू हो गए हैं. 

रेलवे बोर्ड द्वारा मीडिया को जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में जीएम्स की पोस्टिंग करवाने का श्रेय रेलमंत्री श्री दिनेश त्रिवेदी को दिया गया है. अब यह प्रेस विज्ञप्ति जारी करने वाले 'चारणों' को कौन समझाए कि उनको यह श्रेय तो तब होता जब चार महीने पहले रेलमंत्री का पद भार सँभालने के फ़ौरन बाद उन्होंने जीएम्स की यह पोस्टिंग्स करवा दी होतीं. वस्तुस्थिति यह है कि श्री त्रिवेदी पर्याप्त रूप से काबिल होने के बावजूद ममता बनर्जी की छाया मात्र बनकर रह गए हैं, क्योंकि सच्चाई यह है कि आज भी रेल सम्बन्धी सारे फैसले ममता बनर्जी ही ले रही हैं. स्थिति यह है कि पच्शिम बंगाल में दर्जनों गाड़ियों का उदघाटन रोज़ हो रहा है, मगर रेलमंत्री वहां मंच पर सिर्फ एक शो-पीस की तरह उपस्थित होते हैं, जबकि गाड़ियों का उदघाटन और भाषण ममता बनर्जी करती हैं. तभी तो भारतीय रेल मरणासन्न स्थिति में पहुँच रही है. इसीलिए तो अब सारे रेल अधिकारी और कर्मचारीगण ईश्वर से यह प्रार्थना करने लगे हैं कि वह रेलवे बोर्ड के बाबुओं को थोड़ी सद्बुद्धि दे, जिससे वे अपने राजनीतिक स्वार्थ छोड़कर रेल को बचाने पर अपनी सारी काबिलियत का इस्तेमाल कर सकें. 

Friday, October 28, 2011


मगर शर्म उन्हें नहीं आती...

आईआरपीओएफ के महासचिव को इस्तीफा दे देना चाहिए.. 

मुंबई : 16 अक्तूबर की शाम को हुई एक मामूली घटना को तिल का ताड़ बनाकर पू. म. रे. के कार्मिक अधिकारियों ने कर्मचारियों के तथाकथित हंगामे को मोहरा बनाकर इंडियन रेलवे प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) के वित्त सचिव और पू. म. रे. प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन (ईसीआरपीओए) के महासचिव सीनियर एएफए श्री शशिरंजन को निलंबित करा दिया था. पता चला है कि शुक्रवार, 28 अक्तूबर को उनका निलंबन ख़त्म कर दिया गया है. मगर बताते हैं कि सिर्फ निलंबन ही ख़त्म हुआ है, मामला ख़त्म नहीं हुआ है. इसके बाद उन्हें मेज़र या माइनर पेनाल्टी चार्जशीट देकर उनके खिलाफ डीएआर की कार्रवाई शुरू की जाएगी. तथापि इसके लिए आईआरपीओएफ के महासचिव श्री जीतेन्द्र सिंह ने अपने सभी जोनल पदाधिकारियों और अन्य प्रमोटी अधिकारियों को एक मोबाइल सन्देश भेजकर श्री शशिरंजन का निलंबन ख़त्म करवाने में सहयोग देने के लिए आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) और पू. म. रे. कर्मचारी यूनियन (ईसीआरकेयू) के महासचिव को धन्यवाद् दिया है. 

हालाँकि इसमें कोई बुराई नहीं है, मगर यह 'धन्यवाद्' देने में क्या उन्हें शर्म नहीं आई? यह पूछना है भारतीय रेल के तमाम प्रमोटी अधिकारियों का. उनका कहना है कि जब प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और जोनल प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन के एक महत्वपूर्ण पदाधिकारी को इस घटिया तरीके से निलंबित किया जा सकता है, और दोनों अधिकारी संगठन इसमें कुछ नहीं कर पाते हैं, तो सर्वसामान्य प्रमोटी अधिकारी की क्या हैसियत रह गई है? उनका यह भी कहना है कि अब अगर अधिकारियों के अकारण निलंबन को भी ख़त्म करवाने के लिए प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और जोनल प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशने, कर्मचारी संगठनों की मोहताज़ होंगी और उनकी चिरौरी करेंगी, तो यह भविष्य के लिए न सिर्फ एक गलत उदाहरण बनेगा, बल्कि इससे बेहतर तो यह होगा कि प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और जोनल प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशनो को ही ख़त्म कर दिया जाना चाहिए और इन्हें पूर्व की भांति कर्मचारी संगठनों का ही सदस्य बने रहने देना चाहिए, क्योंकि जब यह अपने मामले खुद सुलझाने के लायक नहीं हैं और आज भी इनके मामूली झगड़े कर्मचारी संगठनों को ही आकर सुलझाना पड़ता है, तो इन्हें अलग से अधिकारी संगठन बनाने की मान्यता और इसकी तमाम सुविधाएं क्यों दी जानी चाहिए? 

इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि इस उदाहरण से भविष्य में कर्मचारियों में एक गलत सन्देश जाएगा और वह अब ज्यादा उद्दंड होंगे, उनसे कोई काम लेना पहले की अप्पेक्षा अब अधिकारियों के लिए काफी मुश्किल हो जाएगा. जबकि आज भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं, क्योंकि कर्मचारी संगठनों के कुछ भ्रष्ट पदाधिकारी आज भी अपने उलटे-सीधे काम करवाने के लिए अधिकारियों को ब्लैकमेल करते हैं. चूँकि कुछ अधिकारी भी ऐसे हैं जो गलत कामों में लिप्त हैं, इसलिए सिर्फ किसी एक पक्ष को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा, मगर श्री शशिरंजन के मामले में प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन का रवैया अत्यंत शर्मनाक रहा है. इस मामले में अगर श्री शशिरंजन दोषी हैं, तो दूसरा पक्ष भी उतना ही दोषी है. उसे क्यों नहीं दोषी ठहराया गया? उसे भी क्यों नहीं निलंबित किया गया? एकतरफा कदम उठाने से पहले घटना की फैक्ट फाइंडिंग क्यों नहीं करवाई गई? एक तरफ बिना कोई प्राथमिक जांच के श्री शशिरंजन को निलंबित किया गया और अब उनके खिलाफ डीएआर की कार्रवाई भी की जाएगी. जबकि दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं है. यह कहाँ तक न्यायसंगत है?

जोनल कर्मचारी संगठन ने घुमा-फिराकर ही सही, मगर यह स्वीकार किया है कि श्री शशिरंजन के निलंबन की मांग उसने की थी और अब उनके निलंबन को ख़त्म करवाने में भी उसने अपना कथित सहयोग दिया है. इसके बावजूद श्री शशिरंजन का निलंबन ख़त्म होने में पूरे 12 दिन लग गए? फिर भी परिणाम ढ़ाक के तीन पात वाला ही है, यानि डीएआर कार्रवाई होगी. तो इसमें नया क्या है? निलंबन को तो वैसे भी एक दिन प्रशासन को ख़त्म करना ही पड़ता. उसे अनिश्चित काल तक तो चलाया नहीं जा सकता था. इसमें प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और कर्मचारी संगठन को किस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए? यदि कोई श्रेय किसी को है, तो वह रेल प्रशासन को है. तथापि जिन्होंने हमें थोड़ा सा भी कोई सहयोग किया है, उन्हें धन्यवाद् देना, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता दर्शाना हमारी संस्कृति है, मगर इसकी आड़ में अपनी पीठ थपथपाना एक बेशर्म और चालाकी भरी कोशिश भी है. 

प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन के महासचिव को ऐसी किसी कोशिश से बचना चाहिए था, जो कि नेताओं की तरह दिन भर में 100 बातों में से 90 बातें झूठ बोलते हैं. आज उनकी इस 'खूबी' से भारतीय रेल के सभी प्रमोटी अधिकारी 'बखूबी' वाकिफ हो गए हैं. वह अक्सर कहते या डींग मारते हुए सुने जा सकते हैं कि वह बोर्ड के साथ झगड़ा करके कोई काम करवाने में विश्वास नहीं करते, तो इसका क्या यह मतलब निकाला जाना चाहिए कि क्या वह इस स्थिति में हैं कि वह बोर्ड के साथ कोई झगड़ा भी कर सकते हैं? बल्कि उन्हें यह समझने की जरूरत है कि चापलूसी करने से किसी को अपना अधिकार कभी हासिल नहीं होता. उन्होंने अपनी ऐसी ही कार्यप्रणाली से प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन की सारी गरिमा को न सिर्फ ख़त्म कर दिया है, बल्कि उनकी इसी कार्यप्रणाली के कारण तमाम प्रमोटी अधिकारियों का मोह भी फेडरेशन से भंग हो गया है. यह एक सच्चाई है, और श्री शशिरंजन के मामले को गरिमापूर्ण तरीके से हल न करवा पाने के लिए उन्हें अब प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन के महासचिव पद से तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए, यह न सिर्फ समय की मांग है, बल्कि भारतीय रेल के सभी प्रमोटी अधिकारी भी अब अपने आत्म-सम्मान को बचाए रखने के लिए यही चाहते हैं.