एमएल बने कुलभूषण
एमएस हुए ए.के.वोहरा
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ज्ञातव्य है कि गृह मंत्रालय द्वारा श्री वोहरा को एमएल बनाए जाने सम्बन्धी की गई टिप्पणी के बाद पीएमओ से यह फाइल सोमवार, 8 अगस्त को वापस आ गई थी..जिससे पूरी रेलवे में काफी मायूसी सी छा गई थी, और सब यह कहने लगे थे कि अब भारतीय रेल का ईश्वर ही मालिक है. जहाँ विगत में मेम्बर इंजीनियरिंग (एमई) कि नियुक्ति के लिए एकदम से उतावले हो गए रेलवे बोर्ड ने दिल्ली हाई कोर्ट में यह कहकर गुहार लगाई थी कि एमई कि नियुक्ति न होने से पूरी रेलवे ठप्प हो जाएगी, वहीँ पिछले डेढ़ महीने से बोर्ड मेम्बरों के तीन-तीन महत्वपूर्ण पद खाली पड़े होने के बावजूद रेलवे बोर्ड को इसकी कोई चिंता नहीं थी. यही नहीं अब भी मेम्बर ट्रैफिक (एमटी) कि नियुक्ति का फैसला नहीं हो पाया है. यह अत्यंत शर्म कि बात है, क्योंकि जहाँ अन्य केंद्रीय मंत्रालयों में महीनों पहले सबको यह पाता होता है कि कौन आगे क्या बनेगा, वहीँ रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) मदारियों का अड्डा बनकर रह गया है. जहाँ सिर्फ वही होता है जो 'जमूरा' चाहता है, क्योंकि 'मदारी' का उस पर कोई जोर नहीं है.
इसके अलावा जोनल महाप्रबंधकों के 8 पद महीनो से खाली पड़े हैं जिनके बारे में किसी को कोई चिंता नहीं है, जबकि जीएम के न रहने से जोनो की तमाम प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गई है. यही नहीं, इस राजनीतिक जोड़तोड़ और सौदेबाजी ने कई कार्यक्षम रेल अधिकारियों का न सिर्फ कैरियर चौपट करके रख दिया है, बल्कि पूरी भारतीय रेल के भविष्य को भी अंधकारमय बना दिया है. उम्मीद ही की जा सकती है कि अब एमटी और कुल 11 जोनल महाप्रबंधकों की भी नियुक्ति जल्दी ही हो जाएगी. तथापि एमटी की पोस्ट पर जो गलत और गैर-क़ानूनी परंपरा 'विषधर' डाल गए हैं, फ़िलहाल वही जारी रहने के संकेत मिल रहे हैं.
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