Saturday, April 14, 2012


रेल परिसर में पत्रकार पर हमला..

जहाँ तक रेलवे का क्षेत्र है, वहां 

तक आरपीएफ का कार्यक्षेत्र है 

मुंबई : मध्य एवं पश्चिम रेलवे के दादर स्टेशन पर दोनों रेलों के बीच स्थित मध्य रेलवे सीनियर इंस्टीट्यूट की दीवार और चारदीवारी के बीच बनाई गई अवैध कैंटीन की खबर लेने जब एक स्थानीय हिंदी दैनिक 'नवभारत टाइम्स' के वरिष्ठ पत्रकार श्री आनंद मिश्रा गुरुवार, 12 अप्रैल को वहां गए तो कुछ लोगों ने उसके साथ धक्का-मुक्की और गाली-गलौज किया, उन्हें प्रताड़ित भी किया. उनका पर्स और परिचय पत्र छीनकर फेंक दिया, उन्हें फर्जी पत्रकार बताकर दुबारा वहां आने पर जान से मारने की धमकी दी गई. यह सब उक्त अवैध कैंटीन चलाने और चलवाने वालों ने किया. पुलिस की असंवेदनशीलता एक बार फिर उजागर हुई, श्री मिश्रा को अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए चार-पांच घंटे तक तीन पुलिस स्टेशनों के चक्कर काटने पड़े. जब एक पत्रकार को अपनी शिकायत लिखाने के लिए इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, तो आम आदमी की स्थिति का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है. इस सम्बन्ध में सूचना मिलते ही म. रे. के महाप्रबंधक श्री सुबोध कुमार जैन ने मामले का पूरा संज्ञान लिया. उन्होंने तुरंत इस बारे में मंडल प्रशासन को आवश्यक निर्देश दिए. श्री जैन ने उक्त इंस्टीट्यूट की इमारत को ही ढहा दिए जाने और वहां कोई उपयोगी निर्माण कराए जाने का फरमान भी जारी कर दिया. महाप्रबंधक श्री जैन ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिन रेलकर्मियों को यह इंस्टीट्यूट सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए दिया गया था, उन्होंने इसे अवैध गतिविधियों का अड्डा बना दिया, हम इस सबको हमेशा के लिए ख़त्म करना चाहते हैं. परन्तु मंडल प्रशासन इस पूरे मामले में सिर्फ हीलाहवाली करता रहा और यूनियनों से समन्वय स्थापित करने की बात करता रहा, देर शाम तक उसके द्वारा इंस्टीट्यूट को सील किए जाने के दिए गए आदेश का पालन भी आरपीएफ द्वारा नहीं किया गया था. 

इस मामले की गंभीरता का सबसे ज्यादा संज्ञान राज्य के गृहमंत्री श्री आर. आर. पाटिल ने लिया, मुंबई के सैकड़ों पत्रकार एकजुट होकर उन्हें मिलने के लिए मंत्रालय में उनके चेंबर में पहुँच गए थे. श्री पाटिल तुरंत श्री आनंद मिश्रा को अपनी कार में बैठाकर बिना किसी लाव-लश्कर के ही घटना स्थल का निरीक्षण करने पहुँच गए. श्री पाटिल के इस त्वरित कदम से न सिर्फ पूरा पुलिस महकमा हड़बड़ा गया, बल्कि रेल प्रशासन को भी मामले की गंभीरता का अब अहसास हुआ. गृहमंत्री श्री पाटिल ने न सिर्फ पुलिस को चौबीस घंटों के अन्दर सम्बंधित असली आरोपियों को गिरफ्तार करने का कड़ा निर्देश दिया, बल्कि पुलिस द्वारा अपनी खाल बचाने के लिए पकड़े गए चार स्कूली बच्चों और कैंटीन में काम करने वाले दो लोगों को भी तुरंत छोड़ देने को कहा, जो कि इंस्टीट्यूट में खेलने आए थे और जिनका इस मामले से कोई सम्बन्ध नहीं था. श्री पाटिल के सामने ही इस बच्चों ने पुलिस की असलियत उजागर कर दी. इससे पहले श्री पाटिल ने दादर स्टेशन के पैदल उपरी पुल पर जीआरपी की मेहरबानी से वर्षों से काबिज अवैध फेरीवालों को भी स्थाई रूप से हटाने का निर्देश मुंबई रेल पुलिस आयुक्त को मोबाइल पर वहीं खड़े रहकर दिया. यही नहीं, श्री पाटिल ने वह काम किया जो मंडल रेल प्रशासन ने नहीं किया था, उन्होंने घटना स्थल को अपने सामने पूरी तरह से सील करवा दिया. रेल परिसरों में इस तरह की तमाम अवैध गतिविधियों को रोकने और यात्रियों को इससे होने वाली परेशानी के सम्बन्ध में रेलवे बोर्ड को पत्र लिखने की बात भी श्री पाटिल ने इस मौके पर कही. 

राज्य के गृहमंत्री श्री पाटिल की इस त्वरित कार्रवाई और पत्रकारों को लेकर तुरंत घटना स्थल के निरीक्षण से एक गहरा सन्देश पुलिस और अपराधिक तत्वों को गया है, कि पत्रकारों पर किसी प्रकार के हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएँगे. यही बात श्री पाटिल ने सार्वजनिक रूप से भी कही है. इंस्टीट्यूट की दीवार से लगकर यह कैंटीन इंस्टीट्यूट की प्रबंध समिति (मैनेजिंग कमेटी) में शामिल सदस्यों की मिलीभगत अथवा सहमति के बिना नहीं बनाई जा सकती थी. इस इंस्टीट्यूट का प्रबंधन पहले एक मान्यता प्राप्त संगठन के पास था. उससे जितना बन पड़ा उसने इस इंस्टीट्यूट को बरबाद किया. फिर कुछ समय तक इसका प्रबंधन एक गैरमान्यता प्राप्त संगठन के हाथों में चला गया, उसने इसके फर्नीचर - पंखे भी बेच खाए. जब यह इंस्टीट्यूट पूरी तरह बरबाद हो गया, तब करीब तीन साल पहले रेल प्रशासन ने दोनों मान्यताप्राप्त संगठनों के पदाधिकारियों को लेकर इसके प्रबंधन के लिए एक तदर्थ (एडहाक) समिति बना दी थी. इस समिति में एक कल्याण निरीक्षक भी था. फ़िलहाल यही तदर्थ समिति इसकी देखभाल के बहाने यहाँ अवैध कैंटीन, गैरकानूनी शराब का अड्डा और जुआघर चलवा रही थी. इंस्टीट्यूट में बाहरी लोगों को भी सदस्य बनाया गया है. यह भी एक तथ्य है, जो कि नियम के खिलाफ है. जबकि यह वह रेलवे इंस्टीट्यूट है जहाँ कभी प्रकाश पादुकोण और इक़बाल मेंदर्गी जैसे विश्व स्तरीय खिलाड़ी खेले हैं. यहाँ कभी टेबल टेनिस, बिलियर्ड और बैडमिन्टन खेलने की बेहतरीन व्यवस्था हुआ करती थी. यहाँ एक बहुत ही अच्छी लाइब्रेरी भी हुआ करती थी. इस सबको क्रमशः प्रबंधन समिति में शामिल रहे लोग बेचकर खा गए और कर्मचारियों का वेलफेयर (कल्याण) हो गया. 

यही स्थिति रेलवे के लगभग सभी इंस्टीट्यूट की है. इन सभी रेलवे इंस्टीट्यूट की इस बर्बादी और इनमें चल रहे कदाचार और व्यभिचार के लिए इनकी प्रबंधन समितियों के साथ ही बीसों साल से ओएस/वेलफेयर की सीट पर बैठा कर्मचारी और सम्बंधित अधिकारी भी जिम्मेदार हैं. इन तमाम रेलवे इंस्टीट्यूटस को बाहरी शादियों एवं अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के लिए लाखों रुपये के भाड़े पर देकर इन्हें अवैध कमाई का अड्डा बना दिया गया है. इस तमाम अवैध कमाई का कोई हिसाब नहीं है. जो लोग इससे जुड़े हैं वह कुछ ही सालों में करोड़पति हो गए हैं और रेलवे विजिलेंस तथा अन्य भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियां चुपचाप यह सारा अवैध कारोबार अपनी नाक के नीचे होता देख रही हैं. मगर इस सब में शामिल स्थानीय माफिया की दहशत के कारण न तो कोई कर्मचारी इसकी शिकायत करने की हिम्मत कर पाता है, और न ही कोई एजेंसी इस सब अवैध कारोबार की जांच करने का साहस जुटा पाती है. आखिर यह हो क्या रहा है और किसकी सहमति से हो रहा है और कब तक होता रहेगा? इन तमाम सवालों के बारे में आखिर रेल प्रशासन कब चेतेगा? दादर, भायखला और परेल वर्कशाप के रेलवे इंस्टीट्यूट और बाहरी ग्राउंड भारी अवैध कमाई के अड्डे बने हुए हैं. इसके अलावा विजिलेंस की एडवाइस के बावजूद जब मंडल रेल प्रशासन दादर स्टेशन के डिकाय चेक में पकडे गए कुछ कर्मचारियों को वहां से नहीं हटा पाता है, तो बाकी वह क्या कर सकता है, इसका अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है. 

अब जहाँ तक बात जीआरपी की है, तो उक्त इंस्टीट्यूट उसके दायरे में आता है, सिटी पुलिस का दायरा वहां नहीं हो सकता, क्योंकि उक्त परिसर मध्य एवं पश्चिम रेलवे के बीच स्थित है. जूरिसडिक्शन (परिक्षेत्र) का बहाना बनाकर वह अगर अपना पल्ला झाड़ रही है, तो वह अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है. जहाँ तक बात आरपीएफ की है, तो उसे उसकी जिम्मेदारी से कतई मुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि जहाँ तक रेलवे की संपत्ति है, जहाँ तक रेलवे का परिक्षेत्र है, वहां तक आरपीएफ का कार्यक्षेत्र है. आरपीएफ अधिकारी यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं कि वहां उनका कोई काम नहीं था, वहां काफी अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का आना-जाना था और वहां यूनियन वालों का इन्वाल्वमेंट है. वह यूनियन के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं. उनके पास मैन पावर की कमी है... यह सब रेल प्रशासन का सिरदर्द है, इससे आम आदमी को कोई मतलब नहीं है और न ही उसे यह सब बताकर उसकी सहानुभूति बटोरी जा सकती है. हाँ, उसे यह सब बताकर अपनी हंसी अवश्य उड़वा सकते हैं. अगर उक्त इंस्टीट्यूट में अवैध कैंटीन, अवैध खानपान व्यवस्था, अवैध जुआघर, शराब का अवैध अड्डा, यदि यह सब नहीं चल रहा था तो वहां 30-35 टेबल-कुर्सियां क्यों लगी थीं?, आदि तमाम गैरकानूनी गतिविधियाँ चल रही थीं, तो आरपीएफ की दादर और मुख्यालय स्थित सीआईबी यूनिटें क्या कर रही थीं? उसकी आईवीजी टीम कहाँ अपनी 'सतर्कता' का प्रदर्शन कर रही थी? क्या सीआईबी यूनिटों और आईवीजी टीमों का यह दायित्व नहीं है कि वे रेल परिसरों में होने वाली तमाम वैध-अवैध गतिविधियों पर नजर रखें? जबकि वास्तव में यही उनका दायित्व है. 

यूनियनों का कार्यक्षेत्र कर्मचारियों का कल्याण और उनकी सेवा-शर्तों की रखवाली करना है, न कि रेल संपत्ति का अवैध इस्तेमाल करना या करवाना. यदि वह ऐसा कर या करवा रही हैं, तो आरपीएफ उन्हें ऐसा करने से निश्चित रूप से रोक सकती है, क्योंकि आरपीएफ का कार्यक्षेत्र तो पहले से ही सम्पूर्ण रेल परिसर में फैला हुआ है, और इस परिसर में होने वाली ऐसी किसी भी अवैध गतिविधि को रोकना अथवा रेल संपत्ति का दुरुपयोग होने से बचाना ही आरपीएफ का प्रथम दायित्व है. आरपीएफ को अपने इस दायित्व को निभाने में उसके आड़े कोई भी रेल कर्मचारी या अधिकारी अथवा यूनियन नहीं आ सकती है. फिर इस सबका बहाना क्यों बनाकर अपने संवैधानिक दायित्व से बचना चाहते हैं आरपीएफ के अधिकारी...?? हमारा यह मानना है कि भारतीय रेल में तथाकथित सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के नाम पर चली आ रही इस एंग्लो-इंडियन इंस्टीट्यूट परंपरा को अब पूरी तरह समाप्त कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह स्थान अपने घोषित उद्देश्य से पूरी तरह भटक चुके हैं. दादर में उक्त इंस्टीट्यूट को ढहाकर उसकी जगह एक बड़ा यात्री विश्रामालय बनाया जाना चाहिए, जिससे रेलवे को रोजाना भारी आमदनी होगी, क्योंकि दादर के आसपास कोई मामूली सा होटल भी सस्ता नहीं है, और दोनों रेलों के यात्रियों को यहाँ भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इससे रेलवे के कुछ असामाजिक तत्वों के बजाय रेलवे की कमाई होगी और अवैध एवं गैरकानूनी गतिविधियों को भी हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकेगा. यही व्यवस्था हर रेलवे इंस्टीट्यूट के लिए लागू की जानी चाहिए. 
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