सीआरबी और बोर्ड मेम्बर्स के नाम पर उगाही
कोलकाता : इंडियन रेलवे प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन द्वारा 27 दिसंबर को कोलकाता में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप उर्फ़ पीपीपी पर किए जा रहे सेमिनार के लिए सीआरबी और रेलवे बोर्ड के अन्य मेम्बरों के नाम पर सभी जोनल रेलों के प्रमोटी अधिकारियों से लाखों रुपये की लगभग जबरन उगाही की जा रही है. इससे सभी जोनो के प्रमोटी अधिकारी खासे नाराज़ हैं. कई जोनो के प्रमोटी अधिकारियों ने बताया कि यह उगाही उनसे यह कहकर की जा रही है कि "सेमिनार में सभी बोर्ड मेम्बर और सीआरबी आने वाले हैं, उन्हें 'खिला-पिलाकर खुश' करना है, जिससे उनके अटके हुए काम जल्दी हो जाएँगे." उनका यह भी कहना था कि फेडरेशन को पैसा उगाही का माध्यम बना दिया गया है, जबकि दिल्ली में हुए पिछले सेमिनार में उगाहे गए लाखों रुपये का हिसाब अब तक नहीं दिया गया है. उनका कहना था कि इस मामले में दिल्ली में हुई पिछली कार्यकारिणी मीटिंग में भारी विवाद हो चुका है और इसका हिसाब मांगने वाले पदाधिकारी को एक सोची-समझी साजिश के तहत रेल प्रशासन की मिलीभगत से कुछ इस तरह उत्पीड़ित कर दिया गया है कि जिससे वह अब कोई हिसाब मांगने की जुर्रत न कर सके. इन प्रमोटी अधिकारियों ने बताया कि बिलासपुर में हुई पिछली वार्षिक सर्वसाधारण सभा (एजीएम) में 'एजीएम फंड' के नाम पर प्रत्येक जोनल एसोसिएशन से दस हज़ार और प्रोडक्शन यूनिट से चार हज़ार रुपये लिए जाने का प्रस्ताव पास कराया गया था, और यह तय किया गया था कि जिस जोन को एजीएम के आयोजन का जिम्मा सौंपा जाएगा, उसे फेडरेशन द्वारा एक लाख रु. दिया जाएगा. परन्तु जब यही एक लाख रु पूर्व रेलवे ने माँगा, तो उसे एजीएम के आयोजन से ही वंचित कर दिया गया है. उनका कहना है कि इसमें एक कुटिल चाल यह थी कि जब पूर्व रेलवे प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन इस एजीएम का सारा खर्च उठा लेगा, तो फेडरेशन उस पर बकाया दिखाकर यह लाख रु. उसे नहीं देगा. प्रमोटी अधिकारियों का स्पष्ट आरोप है कि एजीएम की मद में जमा होने वाली करीब दो लाख की राशि में से एक लाख रु. आयोजक रेलवे को देकर बाकी लगभग एक लाख का क्या किया जाएगा, इसका कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं बताया गया है. बताते हैं कि पूर्व रेलवे के निर्वाचित पदाधिकारियों को दरकिनार करके उन अधिकारियों को इस एजीएम और सेमिनार के आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो चुनाव में हार गए थेऔर जोनल एसोसिएशन के मेम्बर तक नहीं हैं. इसके साथ ही द. पू. रे. को भी इस आयोजन में शामिल किया गया है. इसी से यह जाहिर है कि फेडरेशन में न तो कोई एकमत है, और न ही सर्वसम्मति से कोई काम हो रहा है. तमाम प्रमोटी अधिकारी इस बात से सहमत हैं कि अपने और अपने नजदीकी लोगों के हित में बोर्ड के कुछ अधिकारियों के साथ साठ-गाँठ करके न सिर्फ फायदा उठाया जा रहा है, बल्कि उनके हित में जोड़तोड़ करके नियम भी बदलवा लिए गए हैं. उनका कहना है कि इसके लिए बोर्ड के कुछ अधिकारियों को शराब और शबाब मुहैया कराने में लाखों रु का खर्च भी किया गया है. यही नहीं, इस बारे में सम्बंधित बोर्ड अधिकारियों के नाम का बकायदे खुलासा करके यह डींग भी हांकी जाती है कि 'हम तो थोड़ी सी चापलूसी और पटा-पुटू करके अपना काम करवाने में विश्वास रखते हैं.' यदि जरूरत पड़ी तो उन बोर्ड अधिकारियों के नाम का खुलासा भी किया जाएगा, जिनके नामो का उल्लेख खुलेआम किया जाता रहता है. प्रमोटी अधिकारियों का कहना है कि फेडरेशन द्वारा सीआरबी और अन्य बोर्ड मेम्बरों के लिए स्वागत और विदाई समारोहों तथा शराब पार्टियों का आयोजन इसके पहले कभी-भी नहीं किया गया, इससे पता चलता है कि फेडरेशन की गरिमा को किस हद तक नीचे गिराकर उसे बोर्ड मेम्बरों और अधिकारियों की चापलूसी करने वाली संस्था बनाकर रख दिया गया है. उनका कहना है कि अब यदि सीआरबी सहित सभी बोर्ड मेम्बर एक बार फिर कोलकाता में फेडरेशन के मंच पर दिखाई देते हैं, तो पूर्व रेलवे के तमाम प्रमोटी अधिकारियों ने स्थानीय मीडिया में इस बात का जमकर प्रचार करवाने की तैयारी की है, कि उनको सेमिनार में बुलाने और खिलाने-पिलाने के लिए उनके नाम पर लाखों रु. इकट्ठे किए गए थे? इसके साथ ही कई प्रमोटी अधिकारियों का यह भी कहना था कि पूर्व सीआरबी की चापलूसी के लिए जो पिछला सेमिनार कराया गया था, और पूर्व-पूर्व सीआरबी के लिए विदाई समारोह एवं शराब पार्टी का आयोजन किया गया था, वह प्रमोटियों के हित में क्या कर गए हैं, तब क्यों इस तरह से बोर्ड मेम्बर्स की चापलूसी के लिए फेडरेशन द्वारा उनसे बार-बार उगाही की जा रही है और यह रकम प्रमोटियों द्वारा कहाँ से और किससे उगाहकर फेडरेशन को दी जा रही है? इस पर बोर्ड मेम्बर्स को अवश्य विचार करना चाहिए.
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