प्रमोटी अधिकारियों की मज़बूरी..
भारतीय रेल के करीब आठ हजार प्रमोटी अधिकारियों का यह एक बड़ा दुर्भाग्य है कि वह न सिर्फ अपने बड़बोले और निहायत झूठे महासचिव को झेलने के लिए मजबूर हैं, बल्कि वह चाहते हुए भी न तो उनसे इस्तीफा मांग पा रहे हैं, न ही उन्हें हटा पा रहे हैं, क्योंकि अब अगले साल उनका रिटायर्मेंट है. यही कारण है कि यह महासचिव महोदय इन प्रमोटी अधिकारियों को विभिन्न मंचों-फोरमों पर न सिर्फ बुरी तरह अपमानित करवा रहे हैं, बल्कि खुद भी अपमानित होकर अपनी बिरादरी (ग्रुप 'बी') की नाक भी कटवा रहे हैं. जबकि ग्रुप 'ए' अधिकारी और अन्य श्रम संगठन यह सारी वास्तविकता जानते हुए भी चुप हैं, क्योंकि वह चुप रहकर ही अपनी गरिमा को बचा पा रहे हैं. तथापि अपने बारे में उपरोक्त तमाम सच्चाई को जानते हुए भी इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) के यह महासचिव महोदय इतने निर्लज्ज हो गए हैं कि फिर भी उनका झूठ बोलना, बरगलाना, गलत जानकारियां देना और बोर्ड मेम्बरों, सीआरबी सहित कुछ महाप्रबंधकों एवं विभिन्न विभाग प्रमुखों को अपना लंगोटिया यार बताना अथवा अपना क्लासमेट बताकर अपना रुतबा झाड़ना फिर भी नहीं छूटा है.
हाल ही में उत्तर रेलवे बड़ोदा हाउस में एक मीटिंग के दौरान जो वाकया पेश आया, उसके बाद तो इन बड़बोले महासचिव महोदय को कहीं अपना मुंह नहीं दिखाना चाहिए था. बताते हैं कि उक्त मीटिंग में जब यह बोल रहे थे, तब कुछ अधिकरियों ने इन्हें टोका, तो इन्होंने यह कहकर उन्हें चुप करा दिया कि 'जब वह बोलते हैं तो कोई बोर्ड मेम्बर और यहाँ तक कि सीआरबी भी बीच में उन्हें टोकने की हिम्मत नहीं करते हैं.' इसके थोड़ी देर बाद ही जब इन्हें एफए एंड सीएओ/उ.रे. ने टोका, तो इन्होंने उन्हें भी वैसे ही उपरोक्त डायलाग मारने की शुरुआत की ही थी कि एफए एंड सीएओ/उ.रे. ने न सिर्फ इन्हें जोर से डांट दिया, बल्कि बताते हैं कि एक भद्दी सी गाली भी दी और कहा कि वह अपना रौब बोर्ड मेम्बरों को ही जाकर दिखाएं, यहाँ ज्यादा विशेषज्ञता झाड़ने की कोशिश न करें और अपनी हैसियत में ही रहें. इसके बाद इन महासचिव महोदय की बोलती बंद हो गई और इन्हें न तो अन्य श्रम संगठनों के पदाधिकारियों, और न ही अन्य अधिकारियों/सहभागियों में से किसी का भी समर्थन/सहयोग मिला, और यह अपना-सा मुंह लेकर रह गए थे.
ऐसा ही एक वाकया रेलवे बोर्ड की एक मीटिंग में तब पेश आया था, जब इन्होंने नई दिल्ली स्टेशन पर प्लास्टर तोड़कर वहां नया ग्रेनाईट लगाए जाने सम्बन्धी भ्रष्टाचार की बात उठाई थी. बताते हैं कि जैसे ही इन्होंने यह बात उठाई, वैसे ही सीआरबी ने इन्हें पूरे फोरम के सामने ही यह कहकर लगभग डपटते हुए चुप करा दिया कि 'हम जानते हैं कि तुम लोग क्या करते हो, चुप रहो.. पहले अपना आचरण सुधारो, तब दूसरों की तरफ ऊँगली उठाना.' हालाँकि अंत में इनके ध्यानमग्न अध्यक्ष महोदय ने स्थिति को संभाला और प्रमोटियों की गरिमा को कुछ हद तक सुरक्षित किया. तथापि महासचिव महोदय के उच्श्रंखल आचरण से प्रमोटियों की गरिमा का जो नुकसान होना था, वह तो हो ही चुका था.
इसके अलावा डीपीसी में डिले, बैक डेट से डीपीसी को लागू करवाने, जोनल से नेशनल सीनियारिटी बदलवाने, फिर उसमे भी मेनीपुलेशन करने, फेडरेशन को चंदा उगाही का माध्यम बना दिए जाने, तमाम बड़बोलेपन के बावजूद 5400 ग्रेड पे को अब तक हासिल न कर पाने और ग्रुप 'ए' में 50:50 प्रतिशत कोटा आरक्षण सुनिश्चित न करवा पाने और आलोचना से बचने के लिए अगले 10-20 सालों में 90 प्रतिशत प्रमोटियों के जेएजी और एसएजी में पहुँचने, जैसे प्रलोभन देकर प्रमोटियों को बरगलाने आदि-आदि, इन तमाम वास्तविकताओं से सभी ग्रुप 'बी' अधिकारियों का मोह भंग हो चुका है. फेडरेशन के कोषाध्यक्ष और एक जोन के जनरल सेक्रेटरी के साथ पिछले दिनों घटी घटना के सम्बन्ध में एक बार फिर इन महासचिव महोदय ने अपनी आदत के मुताबिक मुंबई में गलत और अत्यंत घटिया जानकारी दी. इन्होंने वहां उपस्थित अधिकारियों को बताया कि 'वह तो अच्छा हुआ कि कोषाध्यक्ष ने जिस कर्मचारी को मारा था, उसका मेडिकल नहीं कराया गया, और पुलिस केस नहीं बना, क्योंकि जिसे मारा था, उसके कान का पर्दा फट गया था, जो कि एक संगीन अपराध है, इस पर पुलिस में बहुत ही संगीन अपराधिक मामला दर्ज हो सकता था...!' जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है, क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. परन्तु यह सब लफ्फाजी करना इन महासचिव महोदय की आदत में शुमार हो गया है और अब इनकी इस आदत को बदल पाना इनके या किसी के वश में नहीं है.
तथापि अब फेडरेशन की एजीएम कोलकाता में 26-27 दिसंबर को जिस तरह यह कराने जा रहे हैं, उसमे न सिर्फ भारी मतभेद हैं, बल्कि इस एजीएम के दौरान वहां यदि आपस में ही जूतमपैजार हो जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. इन महासचिव महोदय की यह शायद आखिरी एजीएम है, इसलिए यह पीपीपी, जिसका अब कोई औचत्य नहीं रह गया है क्योंकि यह कंसेप्ट फेल हो चुका है, पर सेमिनार के बहाने रेलमंत्री और सीआरबी सहित तमाम बोर्ड मेम्बरों को इकठ्ठा करके कुछ कर दिखाना चाहते हैं, और एक बार फिर सभी प्रमोटियों से इस बहाने लाखों रुपये इकठ्ठा कर रहे हों, तो कोई नई बात नहीं होनी चाहिए. जबकि बताते हैं कि अभी तक पिछले सेमिनार में इकठ्ठा की गई लाखों रुपये की राशि का कोई हिसाब-किताब नहीं हुआ है. परन्तु जब पूर्व रेलवे, जहाँ यह एजीएम और सेमिनार करवाया जा रहा है, आयोजक/मेजबान नहीं है, और दक्षिण पूर्व रेलवे के तमाम प्रमोटी अधिकारी ही सहमत/एकजुट नहीं हैं, और आयोजक के तौर पर ही भारी विवाद है, तब ऐसे में उपरोक्त बोर्ड मेम्बर और अन्य मान्यवर इस अवसर पर उपस्थित होकर शायद अपनी गरिमा ही गंवाएँगे.
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