Wednesday, December 28, 2011


डीआरएम और जीएम बनने की पर्याप्त 
जानकारी रखते हैं एकाउंट्स अधिकारी?

नयी दिल्ली : वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी की 5 दिसंबर की मीटिंग में चर्चा के दौरान इसके एजेंडा आइटम नंबर-9 पर अन्य किसी भी विभाग ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी मगर एफसी ने अपनी और अपने विभाग की 'विशेषज्ञता' दर्शाने के लिए यह अवश्य कह दिया की "रेलवे की जनरल पोस्टों पर काम करने के लिए 'ले-खा' विभाग (एकाउंट्स कैडर) के अधिकारियों को पर्याप्त जानकारी होती है." उल्लेखनीय  है कि वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी की मीटिंग के एजेंडा और मिनिट्स के अनुसार कमेटी के आइटम नंबर-9 में स्पष्ट कहा गया है कि - "वर्तमान व्यवस्था में डीआरएम और जीएम जैसी पोस्टों को सभी विभागों के लिए खोल दिया गया है, जिन्हें न तो संरक्षा सम्बन्धी ट्रेन आपरेशंस का कोई अनुभव होता है, और न ही उनकी ऐसी कोई पृष्ठभूमि होती है, जिससे रेलों की संरक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है. पहले की व्यवस्था में इन पोस्टों पर सिर्फ तकनीकी और आपरेटिंग अधिकारियों को ही पदस्थ किया जाता था, उसे ही पुनः स्थापित किए जाने की जरूरत है..!" Agenda item-9.. "The present system of general posts like DRMs and GMs being thrown up to all departments who have no background or exposure in Safety-Related Train Operations has undermined safety in the Railways. The earlier system of only Operating and Technical Officers being considered for such posts need to be restored." अब एफसी को यह कौन बताएगा की मैसूर डिवीजन का हाल क्या है और सोलापुर डिवीजन के डीआरएम को सीआरबी का 'कान्फिडेंशियल नोट' क्यों मिला? उसे भी उन्होंने शायद इसलिए खो दिया कि उनसे कोई क्या पूछेगा अथवा उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा. जिन्हें हमेशा दूसरे अधिकारियों की अपेक्षा ज्यादा संरक्षण इसीलिए मिलता है, क्योंकि वह एकाउंट्स वाले होते हैं. इसीलिए टेंडर कमेटी में अपनी तथाकथित श्रेष्ठता या वरीयता साबित करने के लिए अन्य कमेटी मेम्बर्स के समकक्ष ही एकाउंट्स मेम्बर दिए जाने की अपेक्षा न सिर्फ उनसे एक ग्रेड नीचे वाला लेखा अधिकारी दिया जाता है, बल्कि कोई गलती होने पर उसकी सामान जिम्मेदारी भी तय नहीं की जाती है. इस बात की शिकायत बाकी सभी कैडर के अधिकारियों को हमेशा से रही है. सेफ्टी कमेटी की मीटिंग में एफसी द्वारा अपनी और अपने विभाग की इसी तथाकथित श्रेष्ठता को एक बार फिर अपनी गर्दन ऊँची करके उजागर किया गया है, जिससे वह अन्य सभी कमेटी मेम्बर्स के बीच हंसी का पात्र बनी हैं. एफसी और उनके तमाम लेखाधिकारी रेलवे में डीआरएम और जीएम तो बनना चाहते हैं, मगर वह रेलवे के मातहत नहीं रहना चाहते. सच तो यह है कि डीआरएम और जीएम बनने के लिए ही लेखा विभाग के अधिकारीगण रेलवे में शामिल हुए थे, परन्तु उनके एफसी का पद आज भी वित्त मंत्रालय के अधीन है. वित्त मंत्रालय के मातहत होने की वजह से ही पर्सनल और स्टोर्स की अपेक्षा एफसी उपरोक्त बात पूरे फोरम के सामने कहने की हिम्मत जुटा पाईं. सच यह भी है कि अपवाद स्वरुप एकाध को छोड़कर कोई भी लेखाधिकारी डीआरएम और जीएम बनने की लायकियत नहीं रखता. यह कहना है अन्य सभी कैडरों के अधिकारियों का.. उनका यह भी कहना है कि 'जानकारी' और 'अनुभव' में क्या अंतर होता है, जब यह भी एफसी को पता नहीं है, तो उनके कैडर की तथाकथित श्रेष्ठता सिर्फ एक मजाक का विषय हो सकती है. उनका कहना था कि जो लोग सिर्फ आंकड़ों का खेल करना जानते हैं और अपनी तथाकथित श्रेष्ठता दिखाने के लिए फाइलों एवं टेंडर प्रस्तावों को अटकाना जानते हैं, उन्हें फुट प्लेटिंग और डे-नाइट जनरल एंड विंडो इंस्पेक्शन की बारीकियों की आवश्यक जानकारी भी नहीं होती. ऐसे में उनके डीआरएम और जीएम बनने पर बाकी तकनीकी कैडर के अधिकारी सिर्फ अपना सिर धुनते रहते हैं, क्योंकि उन्हें तकनीकी बारीकियां समझाते-समझाते तकनीकी अधिकारी खुद पागल हो जाते हैं. तथापि अब वर्तमान हाई लेवल सेफ्टी रिव्यू कमेटी को ही यह तय करना है कि वह अपनी सिफारिशों पर अडिग रहती है, या वह भी अपने वेतन-भत्ते पाने और उन्हें पास कराने के लिए एफसी के दबाव में आकर अपनी उक्त सिफारिश को 'डायल्यूट' कर देती है..! 
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