Sunday, October 2, 2011


'विषधर' के प्रभाव से कब मुक्त होगा रेलवे बोर्ड 

  • करीब दो साल से खाली पड़ी एमटी की पोस्ट भी अबतक नहीं भरी जा सकी है 
  • विनय मित्तल के सीआरबी बनने के तीन महीने बाद भी नहीं हो पाई हैं जीएम्स की नियुक्तियां 
  • तीसरी बार एम्पैनाल्मेंट होने के बावजूद राजीव भार्गव और अभय खन्ना को अबतक नहीं मिल पाया है न्याय 
  • फाइलें देखने और लटकाने के लिए पीएमओ और रेलवे बोर्ड के पास बहुत इफरात में है समय 
  • रेल मंत्रालय पर सतत कायम है ममता बनर्जी की काली छाया 
  • प्रधानमंत्री की तरह 'मैडम' से पूछ-पूछकर काम करने की राह पर वर्तमान रेलमंत्री 
www.railsamachar.com
सुरेश त्रिपाठी 

'विषधर' को रिटायर हुए तीन महीने से ज्यादा हो चुके हैं, मगर ऐसा लगता है कि उसकी कलुषित छाया से रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) अबतक मुक्त नहीं हो पाया है. यही बात नए सीआरबी श्री विनय मित्तल के बारे में भी कही जा रही है. हालाँकि श्री मित्तल व्यक्तिगत स्तर पर चाहे जैसे हों, मगर प्रशासनिक स्तर पर उन्हें काफी मजबूत माना जाता रहा है. तथापि उनके सीआरबी बनने के तीन महीने बाद भी यदि रेलवे में प्रशासनिक स्तर पर कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है, तो उनसे भी तमाम रेल अधिकारियों और कर्मचारियों की अपेक्षा भंग होती दिखाई दे रही है. जबकि राजनीतिक और रेलमंत्री स्तर पर तो रेलवे में सुधार की अब रेल अधिकारियों और कर्मचारियों को कोई उम्मीद नहीं है. ऐसे में उन्हें श्री मित्तल से काफी उम्मीदें थीं, वह भी पूरी होती नहीं लग रही हैं. 

इन रेल अधिकारियों को पूरी उम्मीद थी कि पितर पक्ष से पहले मेम्बर ट्रैफिक (एमटी) की भी पोस्टिंग हो जाएगी, मगर एसीसी को भेजी गई इसकी फाइल को फालो करने वाला ही कोई नहीं है. अब बताते हैं कि यह फाइल कैबिनेट सेक्रेटरी के पास पड़ी है, वैसे ही जैसे श्री राजीव भार्गव और श्री अभय खन्ना की फाइल उनके पास करीब दो महीने तक पड़ी रही और उसको फालो करने वाला रेलवे बोर्ड में कोई नहीं था. अब बताया जा रहा है कि शायद दसहरा के बाद ही अब एमटी की पोस्टिंग हो पाएगी. मगर हमारे सूत्रों का एक कयास यह भी है कि विषधर की भांति ही एमटी की पोस्ट को अभी कुछ दिनों तक सीआरबी के साथ ही चिपकाए रखा जाने वाला है. हालाँकि इस पोस्ट के लिए बचे अब एकमात्र उम्मीदवार श्री के. के. श्रीवास्तव का इंटरव्यू करीब महीना भर पहले ही रेलमंत्री द्वारा लिया जा चुका है. अब इस तरह के 'इंटरव्यू' का मतलब आज सभी रेल अधिकारियों और कर्मचारियों को मालूम हो चुका है कि इसमें उनके सामने क्या-क्या शर्तें रखी गई होंगी अथवा क्या करना है, क्या नहीं करना है और करना है तो किस तरह करना है, यह सब कुछ उनसे पूछा नहीं गया होगा, बल्कि उन्हें समझाया गया होगा. 

उधर प्रशासनिक स्तर पर सुदृढ़ माने जाने वाले श्री मित्तल की सीआरबी पद पर पदस्थापना के बाद यह मान लिया गया था कि अब शायद जीएम्स की पोस्टिंग जल्दी हो जाएगी, मगर  रेल अधिकारियों और कर्मचारियों की यह सामान्य अपेक्षा आज तीन महीने बाद भी खरी नहीं उतरी है. उल्लेखनीय है कि 11 जोनल जीएम्स के पद पहले से खाली पड़े हुए हैं तथा 2 पद इसी महीने और खाली होने जा रहे हैं. इनमे से द. पू. म. रे. बिलासपुर का पद दिसंबर 2010 से, प. रे. मुंबई का पद जनवरी 2011 से, इंटीग्रल कोच फैक्टरी पेराम्बुर, रेलवे वैगन फैक्टरी बंगलौर और व्हील एंड एक्सेल प्लांट के पद अप्रैल 2011 से, द. म. रे. सिकंदराबाद, रेलवे कोच फैक्टरी कपूरथला और कोर इलाहाबाद के पद मई 2011 से, द. पू. रे. कोलकाता का पद जून 2011 से और म. रे. मुंबई एवं पू. त. रे. भुवनेश्वर के पद जुलाई 2011 से खाली पड़े हुए है, जबकि श्री के. के. सक्सेना और श्री कुलदीप चतुर्वेदी के आरसीटी में चले जाने पर डीजल लोकोमोटिव वर्क्स वाराणसी तथा द. प. रे. हुबली के दो जीएम पद इसी महीने और खाली हो जाने वाले हैं. और खुदा न खास्ता यदि एमटी के पद पर श्री के. के. श्रीवास्तव की नियुक्ति शीघ्र ही हो जाती है, तो पू. म. रे. हाजीपुर के जीएम का एक पद और जल्दी ही खाली हो जाएगा. इस प्रकार कुल मिलाकर वर्तमान में 14 जीएम की नियुक्ति की जानी है. तथापि ऐसा लगता नहीं है कि रेलवे बोर्ड, पीएमओ, रेलमंत्री और सीआरबी को इसकी कोई परवाह है? इसके अलावा मुंबई रेल विकास निगम और रेल टेल कारपोरेशन तथा इंडियन रेलवे वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के प्रबंध निदेशकों (एमडी) के महीनो से खाली पड़े पद 'विषधर' के कर्मों को रो रहे हैं. 

एसीसी और पीएमओ को भेजी जाने वाली फाइलों को देखने के लिए प्रधानमंत्री और कैबिनेट सेक्रेटरी के पास या तो बहुत सारा फ़ालतू वक़्त है, अथवा उन्हें इन फाइलों से बहुत मोहब्बत हो जाती है, शायद यही वजह है कि इन फाइलों को वह अपनी महबूबा मानकर दो-दो, चार-चार महीनों तक एकांत में रखकर उन्हें एकटक घूरते रहते हैं. जबकि रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री को यह पोस्टिंग प्रस्ताव बनाने एवं पीएमओ को भेजने में नींद आती रहती है, शायद उनकी इस सोते रहने की वजह से ही पिछले 11 महीनों से जीएम्स की पोस्टिंग नहीं हो पाई है. अब जब श्री राजीव भार्गव को तीसरी बार और श्री अभय खन्ना को दूसरी बार जीएम पैनल में समाहित किया गया है, तब भी उन्हें जल्दी न्याय मिलता नजर नहीं आ रहा है. ऐसा रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है. सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों को गलत बात के लिए भी सही सोचने हेतु मजबूर किया जा रहा है और चौथी बार रेलवे बोर्ड द्वारा गलत बात को सही बताकर पीएमओ को गुमराह किया जा रहा है. उनका कहना है कि रेलवे बोर्ड के इन स्वनामधन्य अधिकारियों या नीति-निर्धारकों को कब सही समझ आएगी और ये कब इस अंधकार से बाहर निकल सकेंगे? 

रेलवे बोर्ड के अधिकाँश अधिकारियों का कहना है कि जिस तरह रेलवे बोर्ड पर विषधर की कलुषित छाया अब तक कायम है, उसी प्रकार पूरे रेल मंत्रालय पर ममता बनर्जी की भी काली छाया अब तक पड़ रही है. शायद यही वजह है कि प्रत्येक उच्च स्तरीय पोस्टिंग में 'सौदेबाजी' हो रही है, क्योंकि अबतक जितनी 'कमाई' की गई थी, वह तो पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल करने और विधान सभा चुनाव जीतने में खर्च हो चुकी है, मगर अभी आगे इस सत्ता को टिकाए रखने का भी तो पर्याप्त बंदोबस्त करना है? इसीलिए ममता बनर्जी ने न तो रेल मंत्रालय अपनी पार्टी के हाथ से जाने दिया है, और न ही इस पर से अपनी पकड़ ढीली की है? ऐसे में यदि वर्तमान रेलमंत्री उनसे पूछ-पूछकर या उनके बताए अनुसार अथवा उनकी ही तर्ज़ पर फाइलों का निपटारा कर रहे हैं, तो इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि जिस प्रकार इस देश का प्रधानमंत्री अपनी 'मैडम' के इशारे पर उठता-बैठता, चलता-फिरता है, ठीक उसी प्रकार यदि उनका एक मंत्री भी अपनी 'मैडम' के इशारों का अनुसरण करता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. 

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